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________________ समवाय ८४ २५३ ८५०००-८५००० योजन के हैं। जम्बूद्वीप से आठवाँ द्वीप नन्दीश्वर द्वीप है। उसके चक्रवाल विष्कम्भ के बीच में पूर्वादि चारों दिशाओं में चार अंजनक पर्वत हैं। वे सब अंजनक नामक रत्नमय हैं। • पद के परिमाण से भगवती सूत्र में ८४००० पद हैं। जिससे अर्थ की उपलब्धि होती हो उसे यहाँ पद माना गया है। मतान्तर से तो आचाराङ्ग सूत्र के १८००० पद माने गये हैं। शेष अङ्गों के आगे आगे दुगुना दुगुना करते हुए भगवती सूत्र के २८८००० पद परिमाण संख्या प्राप्त होती है। ____ दक्षिण दिशा के नागकुमारों के आवास ४४ लाख हैं और उत्तर दिशा में ४० लाख आवास हैं। इस प्रकार सब मिलाकर ८४ लाख आवास हैं । जीवोत्पत्ति के स्थानों को योनि कहते हैं। यद्यपि जीवोत्पत्ति के स्थान असंख्यात हैं किन्तु वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श जिन जीवों का एक समान हो उन सबकी एक योनि गिनी गई है। इस अपेक्षा से सब जीवों की ८४ लाख योनियाँ कही गई हैं। संग्रहणी गाथा इस प्रकार है - . पुढवी-दग-अगणि-मारुय, एक्केक्के सत्त जोणिलक्खाओ। वण पत्तेय अणंते दस, चउदस जोणिलक्खाओ ॥ १ ॥ विगलिंदिएस दो दो चउरो, चउरो य नारयसुरेसु । तिरिएस होति चउरो, चोइसलक्खा उ मणुएसु ॥ २ ॥ अर्थात् - ७ लाख पृथ्वीकाय, ७ लाख अप्काय, ७ लाख तेउकाय, ७ लाख वाउकाय, १० लाख प्रत्येक वनस्पति काय, १४ लाख साधारण वनस्पति काय, २ लाख बेइन्द्रिय, २ लाख तेइन्द्रिय, २ लाख चउरिन्द्रिय, ४ लाख नारकी, ४ लाख देवता, ४ लाख तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय और १४ लाख मनुष्य; ये सब ८४ लाख योनि होती है। एक लाख के पीछे मूल भेद कितने लेने चाहिये इसका आगमों में खुलासा देखने में नहीं आता। किन्तु पूर्वाचार्यों की धारणा के अनुसार १ लाख के पीछे ५० मूल भेद लेने चाहिये। फिर उनको ५ वर्ण २ गंध ५ रस और ८ स्पर्श तथा ५ संस्थान .। इन २५ से क्रमश: गुणा करने पर १ लाख हो जाता है। इस प्रकार सब जीवों की योनि के सम्बन्ध में समझना चाहिये। जैसे कि - बेइन्द्रिय के २ लाख योनि है। उसके मूल भेद १०० लिये गये हैं। १०० x ५ वर्ण = ५००। ५०० x २ (गंध) = १०००। १००० x ५ (रस) = ५०००। ५००० x ८ (स्पर्श) = ४००००। ४०००० x ५ (संस्थान) = २०००००। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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