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________________ २४६ समवायांग सूत्र .. · अस्सीवां समवाय सिज्जसे णं अरहा असीइं धणूडूं उड़े उच्चत्तेणं होत्था। तिविढे णं वासुदेवे असीइं धणूई उड़े उच्चत्तेणं होत्था। अयले णं बलदेवे असीइं धणूई उढे उच्चत्तेणं होत्था। तिविढे णं वासुदेवे असीइं वाससयसहस्साई महाराया होत्था। आउ बहुले णं कंडे असीइं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते। ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो असीइ सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। जंबूहीवे णं दीवे असीउत्तरं जोयणसयं ओगाहित्ता 'सूरिए उत्तर कट्ठोवगए पढमं उदयं करेइ ॥८० ॥ कठिन शब्दार्थ - आउ बहुले कंडे - अप् बहुल काण्ड, उत्तरकट्ठोवगए - उत्तर 'दिशा में गया हुआ। भावार्थ - ग्यारहवें तीर्थङ्कर श्री श्रेयांशनाथ भगवान् के शरीर की ऊंचाई अस्सी धनुष की थी। श्री श्रेयांशनाथ भगवान् के समय में होने वाले प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ और अचल बलदेव के शरीर की ऊंचाई अस्सी धनुष की थी। त्रिपृष्ठ वासुदेव ने अस्सी लाख वर्ष तक राज्य किया था। रत्नप्रभा नरक का तीसरा अपबहुल काण्ड अस्सी हज़ार योजन का मोटाजाड़ा कहा गया है। देवों के राजा देवों के इन्द्र ईशानेन्द्र के अस्सी हजार सामानिक देव कहे गये हैं। इस जम्बूद्वीप की जगती से १८० योजन जाकर सूर्य उत्तर दिशा में सर्वाभ्यन्तर मण्डल में उदित होता है ॥ ८० ॥ विवेचन - इस अवसर्पिणी काल के ११ वें तीर्थङ्कर श्री श्रेयांसनाथ थे। उन्हीं के समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का जीव इस अवसर्पिणी काल का पहला वासुदेव त्रिपृष्ठ नामका हुआ था। उनका बड़ा भाई अचल बलदेव था। इन तीनों के शरीर की ऊँचाई अस्सी धनुष की थी। त्रिपृष्ठ वासुदेव चार लाख वर्ष कुमार अवस्था में रहे थे और ८० लाख वर्ष राज्य पद भोगा था। इस प्रकार कुल ८४ लाख वर्ष का आयुष्य भोग कर सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकावास में उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की स्थिति में उत्पन्न हुआ । इस रत्नप्रभा पृथ्वी का १८०००० योजन मोटा पृथ्वीपिण्ड है। उसके तीन काण्ड हैं। १६ प्रकार के रत्नमय १६००० योजन का मोटा पहला रत्नकाण्ड है, दूसरा पंककाण्ड ८४००० योजन का है और तीसरा अप्प बहुलकाण्ड ८०००० योजन का है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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