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समवाय ७०
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समुद्र में जाने पर गौतम द्वीप है। वह १२००० योजन का लम्बा चौड़ा है। वहाँ पर लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव का भवन है। मेरु पर्वत के पश्चिम चरमान्त से गौतम द्वीप का पश्चिम चरमान्त ६९००० योजन अन्तर वाला बिना किसी व्यवधान के कहा गया है। मेरु से लवण समुद्र ४५००० योजन दूर है। वहाँ से गौतम द्वीप १२ हजार योजन दूर है और वह स्वयं १२००० योजन चौड़ा है। इस प्रकार ४५०००+१२०००+१२००० इस प्रकार ६९ हजार योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है।
सित्तरवां समवाय समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे वइक्कंते सत्तरिएहिं राइदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइ। पासे णं अरहा पुरिसादाणीए सत्तरि वासाई बहु पडिपुण्णाई सामण्ण परियागं पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। वासुपुज्जे णं अरहा सत्तरं धणूइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था। मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तरि सागरोवम कोडाकोडीओ अबाहूणिया कम्मठिई कम्मणिसेगे पण्णत्ते। माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरणो सत्तरि सामाणिय साहस्सीओ पण्णत्ताओ ॥ ७० ॥ . कठिन शब्दार्थ - सवीसइराए मासे वइक्कंते - एक मास और बीस रात-दिन व्यतीत होने पर, सत्तरिएहिं राइंदिएहिं सेसेहिं - ७० रात-दिन शेष रहने पर, वासावासं पजोसवेइसंवत्सरी पर्व किया, अबाहूणिया कम्मठिई - बाधाकाल रहित ऊन (कम) स्थिति, कम्मणिसेगे - कर्म निषेक अर्थात् - कर्म उदय आने की रचना विशेष। - भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने वर्षाकाल प्रारम्भ होने पर अर्थात् सावण वदी १ से लेकर एक मास और बीस रात-दिन बीतने पर तथा ७० रात-दिन शेष रहने पर सांवत्सरिक पर्व किया। पुरुषादानीय अर्थात् पुरुषों में विशेष आदेय वचन वाले आदरणीय भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी सत्तर वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन करके सिद्ध बुद्ध यावत् सब दुःखों से मुक्त हुए। बारहवें तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य स्वामी के शरीर की ऊंचाई सित्तर धनुष की थी। मोहनीय कर्म की • बाधा काल रहित स्थिति और ® कर्म निषेक सित्तर कोडाकोडी
• मोहनीय कर्म का अबाधाकाल ७ हजार वर्ष का है और उत्कृष्टं स्थिति ७० कोडाकोडी सागरोपम की है।
® कर्म पुद्गलों की रचना को निषेक कहते हैं ।
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