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________________ २१२ समवायांग सूत्र साठ, संघाइए - रहता है, बलिस्स वइरोयणिंदस्स देवों के राजा, देविंदस्स- देवों के इन्द्र । कठिन शब्दार्थ- सट्ठिए बलि नामक वैरोचनेन्द्र, देवरण्णो भावार्थ - सूर्य के १८४ मण्डल हैं, उनमें से प्रत्येक मण्डल पर सूर्य साठ साठ मुहूर्त तक रहता है। साठ हजार नाग देवता लवण समुद्र के अग्रोदक यानी शिखर के पानी को दबाते रहते हैं। तेरहवें तीर्थङ्कर श्री विमलनाथ स्वामी के शरीर की ऊंचाई साठ धनुष की थी। बलि नामक वैरोचनेन्द्र के साठ हजार सामानिक देव कहे गये हैं । देवों के राजा देवों के इन्द्र ब्रह्म देवेन्द्र के साठ हजार सामानिक देव कहे गये हैं । सौधर्म देवलोक में ३२ लाख विमान हैं और ईशान देवलोक में २८ लाख विमान हैं, दोनों देवलोकों के सब मिला कर साठ लाख विमान हैं ॥ ६० ॥ विवेचन - सूर्य के १८४ मण्डलों में से प्रत्येक मण्डल पर सूर्य साठ-साठ मुहूर्त्त तक रहता है। इसका अभिप्राय यह है कि एक दिन में सूर्य जहाँ उदय हुआ है उस स्थान पर सूर्य दो रात्रि दिन में वापिस आता है। लवण समुद्र में दगमाला १६००० योजन ऊँचा गया है। उसके ऊपर दो कोस की पानी की बेला चढ़ती है और घटती है उसे 'अगोदक' कहते हैं। साठ हजार नाग कुमार देवता उसे दबाते रहते हैं । यह अनादि की व्यवस्था है। जीवाभिगम सूत्र की तीसरी प्रतिपत्ति में द्वीप समुद्रों के वर्णन में बताया है कि - जम्बूद्वीप में तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, साधुसाध्वी, श्रावक, श्राविका आदि धार्मिक पुरुषों के माहात्म्य के कारण लवण समुद्र का दगमाला - और उसकी बेल जम्बूद्वीप में पड़ कर उसे प्लावित नहीं कर सकती अर्थात् इसको जलमग्न नहीं कर सकती है। इकसठवां समवाय पंच संवच्छरियल्स णं जुगस्स रिउमासेणं मिज्जमाणस्स इगसट्ठि उऊ मासा पण्णत्ता । मंदरस्स णं पव्वयस्स पढमे कंडे एगसट्ठि जोयणसहस्साइं उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ते । चंदमंडले णं एगसट्ठिविभाग विभाइए समंसे पण्णत्ते । एवं सूरस्स वि ॥ ६१ ॥ कठिन शब्दार्थ - पंच संवच्छरियस्स जुगस्स - पांचवर्ष का एक युग होता है, रिउ मासेण ऋतु मास से, मिज्जमाणस्स गिनती करने पर, पढमे कंडे प्रथम कांड, एगसद्विविभाग विभाइए - इकसठ भाग से विभाजित करने पर समंसे - समांश । भावार्थ- पांच वर्ष का एक युग होता है। ऋतुमास से गिनती करने पर एक युग में Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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