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________________ . समवाय५२ २०१ जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। दसणावरण णामाणं दोण्हं कम्माणं एकावण्णं उत्तरकम्मपयडीओ पण्णत्ताओ॥५१॥ - कठिन शब्दार्थ - णवण्हं बंभचेराणं - आचारांग सूत्र के ब्रह्मचर्य नामक प्रथम श्रुतस्कंध के ९ अध्ययन, सुहम्मा सभा - सुधर्मा सभा, एकावण्णं खंभसय सण्णिविट्ठा - इकावन सौ खंभों पर स्थित, परमाउं - उत्कृष्ट आयु। भावार्थ - आचाराङ्ग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययनों के इकावन उद्देशन काल कहे गये हैं। असुरों के राजा असुरों के इन्द्र चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा इकावन सौ खम्भों पर स्थित है। इसी तरह बलीन्द्र की सभा भी इकावन सौ खम्भों पर अवस्थित है। सुप्रभ नामक चौथा बलदेव इकावन लाख वर्ष की उत्कृष्ट आयु को भोग कर सिद्ध, बुद्ध यावत् सब दुःखों से रहित हुए। दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियाँ और नाम कर्म की बयालीस प्रकृतियाँ हैं, इस प्रकार दोनों कर्मों की कुल मिला कर इकावन उत्तर कर्म प्रकृतियाँ कही गई हैं ॥ ५१ ॥ विवेचन - आचाराङ्ग प्रथम श्रुतस्कन्ध के शस्त्रपरिज्ञा आदि ९ अध्ययन हैं। शास्त्रकार ने इनको नौ ब्रह्मचर्य अध्ययन कहा है। इनके इकावन उद्देशक हैं इसलिये उद्देशनकाल .. (प्रारम्भ करने का समय) भी इकावन हैं। सुप्रभ नामक चौथे बलदेव, चौदहवें तीर्थङ्कर अनन्तनाथ स्वामी के समय में हुए थे। उनका सम्पूर्ण आयुष्य इकावन लाख वर्ष का था। आवश्यक सूत्र में तो इनका आयुष्य पचपन लाख वर्ष लिखा है, यह मतान्तर मालूम होता है। दर्शनावरणीय कर्म की नौ उत्तरप्रकृतियाँ हैं और नाम कर्म की बयालीस प्रकृतियाँ हैं इस प्रकार दोनों कर्मों की मिला कर इकावन उत्तर कर्म प्रकृतियाँ कही गई हैं। . बावनवां समवाय मोहणिजस्स कम्मस्स बावण्णं णामधेजा पण्णत्ता तंजहा - कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे विवाए १०। माणे मदे दप्पे थंभे अत्तुक्कोसे गव्वे परपरिवाए अक्कोसे अवक्कोसे (परिभवे) उण्णए उण्णामे २१। माया उवही णियडी वलए गहणे णूमे कक्के कुरुए दंभे कूडे जिम्हे किव्विसे अणायरणया गृहणया वंचणया पलिकुंचणया साइजोगे ३८। लोभे इच्छा मुच्छा कंखा गेही तिण्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा णंदी रागे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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