________________
समवाय ४२
१८७
भावार्थ - इक्कीसवें तीर्थङ्कर श्री नमिनाथ स्वामी के इकतालीस हजार आर्यिकाएँ थी। रत्नप्रभा नरक में ३० लाख नरकावास हैं, पंकप्रभा में १० लाख, तमप्रभा में पांच कम एक लाख, तमस्तमाप्रभा में पांच नरकावास हैं, इस प्रकार पहली, चौथी, छठी और सातवीं इन चार नरकों में कुल मिला कर इकतालीस लाख नरकावास हैं। महालिका विमान प्रविभक्ति नामक कालिक सूत्र के पहले वर्ग में इकतालीस उद्देशन काल कहे गये हैं ॥ ४१ ॥ --- विवेचन - इस अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थङ्करों में से २१ वें तीर्थङ्कर भगवान् का नाम 'नमिनाथ' है। वे जब मिथिला नगरी के राजा विजय सेन की पटरानी श्री वप्रादेवी के गर्भ में आये तब विजयसेन राजा के शत्रु सब राजा नम गये । इसलिये जन्म के बाद मातापिता ने इनका गुणनिष्पन्न नाम 'नमि' दिया। कुछ लोग भ्रान्ति के वश इनको 'नेमिनाथ' कह देते हैं परन्तु यह यथार्थ नहीं है। क्योंकि बाईसवें तीर्थङ्कर का नाम तो 'अरिष्टनेमि' है। इस नाम को कोई नेमिनाथ भी कहते हैं। ये सहोदर सगे चार भाई थे। १. अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) रहनेमि (रथनेमि) इन दोनों का वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के बाईसवें अध्ययन में है। तीसरा है - सत्यनेमि और चौथा दृढनेमि । इन दोनों भाइयों का वर्णन अंतगडसूत्र के चौथे वर्ग में है। इन सब भाइयों के नाम के पीछे 'नेमि' लगता है। ये चारों भाई उसी भव में मोक्ष में गये हैं।
बयालीसवां समवाय ___समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। जंबूहीवस्स णं दीवस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स णं आवास पव्वयस्स पच्चथिमिल्ले चरमंते एस णं बायालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं चउदिसिं पि दगभासे, संखे, दगसीमे य। कालोए णं समुहे बायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा। बायालीसं सूरिया पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा। सम्मुच्छिम भुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं ठिई पण्णत्ता। णामकम्मे बायालीसविहे पण्णत्ते तंजहा - गइणामे जांइणामे सरीरणामे सरीरंगोवंगणामे सरीरबंधणणामे सरीरसंघायणणामे संघयणणामे संठाणणामे वण्णणामे गंधणामे रसणामे फासणामे अगुरुलहुणामे उवघायणामे पराघायणामे आणुपुव्वीणामे उस्सासणामे आयवणामे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org