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________________ समवाय ३१ प्राप्त हुई थी ( सम्यग्दृष्टि, साधु, केवली, तीर्थङ्कर) शेष सोलह तीर्थंकरों को पांच पदवियाँ प्राप्त हुई थी (सम्यग्दृष्टि, माण्डलिक, राजा, साधु, केवली, तीर्थङ्कर) । तीर्थङ्करों में उस भव में कम से कम चार पदवियाँ और ज्यादा से ज्यादा छह पदवियाँ प्राप्त हो सकती हैं। इससे कम या ज्यादा प्राप्त नहीं हो सकती है। १५१ PETRIF महामोहनीय बन्ध के स्थानों में कुमार शब्द का अर्थ अविवाहित एवं बाल ब्रह्मचारी लेना चाहिये । अतः निष्कर्ष यह निकला कि - जो विवाहित हैं वह अपने आपको अविवाहित कहे तथा जो बाल- ब्रह्मचारी नहीं है वह अपने आपको बाल- ब्रह्मचारी कहे तो वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । Jain Education International इकतीसवां समवाय एक्कतीसं सिद्धाइगुणा पण्णत्ता तंजहा- खीणे आभिणिबोहिय णाणावरणे, खीणे सुय णाणावरणे, खीणे ओहि णाणावरणे, खीणे मणपज्जव णाणावरणे, खीणे केवल णाणावरणे, खीणे चक्खु दंसणावरणे, खीणे अचक्खु दंसणावरणे, खीणे ओहि दंसणावरणे, खीणे केवल दंसणावरणे, खीणे णिद्दा, खीणे णिद्दाणिद्दा, खीणे पयला, खीणे पयला पयला, खीणे थीणद्धी, खीणे सायावेयणिज्जे, खीणे असाया वेयणिजे, खीणे दंसणमोहणिज्जे, खीणे चरित्तमोहणिज्जे, खीणे णेरइयाउए, खीणे तिरियाउए, खीणे मणुस्साउए, खीणे देवाउए, खीणे उच्चागोए खीणे णीयागोए (णीच्चागोए ), खीणे सुभणामे, खीणे असुभणामे, खीणे दाणंतराए, खीणे लाभंतराए, खीणे भोगंतराए, खीणे उवभोगंतराए, खीणे वीरियंतराए । मंदरे णं पव्वए धरणितले एक्कतीसं जोयण- सहस्साई छच्चेव तेवीसे जोयणसए किंचिदेसूणा परिक्खेवेणं पण्णत्ते । जया णं सूरिए सव्व बाहिरियं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं इहगयस्स मणुस्सस्स एक्कतीसेहिं जोयणसहस्सेहिं अट्ठहि य एक्कतीसेहिं जोयणसएहिं तीसाए सद्विभागे जोयणस्स सूरिए चक्खुफासं हव्वमागच्छइ । अभिवड्डिए णं मासे एक्कतीसं साइरेगाई राइंदियाई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। आइच्चे णं मासे एक्कतीसं राइंदियाई किंचि विसेसूणाई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते । इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं एक्कतीसं पलिओ माई ठिई पण्णत्ता । अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं एक्कतीसं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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