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समवाय २९
१३५ MAHARA HTR MANANTRIANITARANATANTRIKINNAMASTANAANTITINITION Om राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। एवं चेव भहवए मासे, कत्तिए मासे, पोसे मासे, फग्गुणे मासे, वइसाहे मासे । चंददिणे एगूणतीसं मुहुत्ते साइरेगे मुहत्तग्गेणं पण्णत्ते । जीवे णं पसत्थज्झवसाणजुत्ते भविए सम्मदिट्ठी तित्थयरणामसहियाओ णामस्स णियमा एगूणतीसं उत्तरपयडीओ णिबंधित्ता वेमाणिएसु देवेसु देवत्ताए उववजइ। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं णेरइयाणं एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं एगूणतीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। उवरिम मज्झिम गेविजयाणं देवाणं ज़हण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। जे देवा उवरिम हेट्ठिम गेविजय विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसिणं देवाणं उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा एगूणतीसेहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा णीससंति वा। तेसिणं देवाणं एगूणतीसेहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पजइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एगूणतीसेहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुझिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ॥ २९ ॥
कठिन शब्दार्थ - एगुणतीसइ विहे - उनतीस प्रकार का, पावसुय पसंगे - पापश्रुत प्रसंग-पाप आगमन के कारणभूत श्रुत, भोमे - भौम-भूमि कंपनादि का फल बताने वाला शास्त्र, उप्पाए.- उत्पात शास्त्र, सुमिणे - स्वप्न शास्त्र, अंतरिक्खे-अंतलिक्खे - अंतरिक्ष शास्त्र, अंगे - अंग शास्त्र, सरे - स्वर शास्त्र, वंजण - व्यञ्जन शास्त्र, लक्खणे - लक्षण शास्त्र, विसी - वृत्ति, वत्तिए - वार्तिक, विकहाणुजोगे - विकथानुयोग, विजाणुजोगे - विद्यानुयोग, अण्णतित्थिय पवत्ताणुजोगे - अन्यतीर्थिक प्रवृत्तानुयोग, पसत्यज्झवसाणजुत्तेप्रशस्त शुभ अध्यवसाय वाला।
भावार्थ - पापश्रुत प्रसङ्ग - पाप उपादान के हेतुभूत अर्थात् पाप आगमन के कारण भूत श्रुत पापश्रुत कहलाते हैं, वे उनतीस प्रकार के हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं - १. भौम-भूमि कंपादि का फल बताने वाला निमित्त शास्त्र. २. उत्पात्त - रुधिर की वृष्टि, दिशाओं का लाल होना आदि लक्षणों का शुभाशुभ फल बतलाने वाला निमित्त शास्त्र ३. स्वप्नशास्त्र - स्वप्नों का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र ४. अन्तरिक्ष शास्त्र - आकाश में होने वाले ग्रहवेधादि का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र ५. अङ्गशास्त्र - आंख, भुजा आदि के स्फुरण का
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