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________________ समवाय २१ •भनननननननननननननननन 1 - शबल दोष के इक्कीस भेद मूल में बताये गये हैं। रात्रि भोजन के चार भङ्ग बतलाये गये हैं - १. रात में लेकर रात में खाना । २. रात में लेकर दिन में खाना । तथा मूल गुणों में तीन दोषों का . ( अनाचार को छोड़ कर ) सेवन करने से चारित्र शबल (दूषित) हो जाता है । १०५ ३. दिन में लेकर रात में खाना । ४. दिन में लेकर दिनान्तर में खाना । अर्थात् पहले दिन लेकर अपने पास रात बासी रख कर दूसरे दिन खाना । मुनि के लिये इन चारों भङ्गों का निषेध है । अभी वर्तमान में कोई एक साधक ऐसा कहते हैं कि गृहस्थ के घर रात्रि में बनी हुई चीज साधु साध्वी को लेना नहीं कल्पता है। क्योंकि - "रात्रि में बने हुए आहारादि को लेना रात्रि भोजन ही है ।" परन्तु यह कहना आगमानुकूल नहीं है। क्योंकि गृहस्थ के यहाँ तो बहुत सी चीजें रात्रि में ही बनती हैं। जैसे दही आदि तथा गुड़, शक्कर आदि मिलों में दिन और रात बनते ही रहते हैं । इसलिये टीकाकार ने रात्रि भोजन के चार उपर्युक्त भेद बताये हैं किन्तु रात्रि में बना हुआ आहार आदि लेना रात्रि भोजन नहीं बतलाया है । अतः आगम से अधिक कहना 'अइरित्त- अतिरिक्त अधिक' नामक मिथ्यात्व है। किसी खास साधु साध्वी के लिये बनाया गया आहार आदि यदि वही साधु साध्वी ले तो आधाकर्म दोष लगता है और यदि दूसरा साधु साध्वी ले तो औद्देशिक दोष लगता है। औद्देशिक और आधाकर्म में यही अन्तर 1 " औद्देशिक" का शब्दार्थ इस प्रकार किया गया है. Jain Education International ननननननननI•I.PH - "साधु साध्वी: उद्दिश्य तन्निमित्तं कृतं आहारादिकं औद्देशिकम् ।" अर्थात् साधु साध्वी के निमित्त बनाया हुआ आहारादि । " आधाकर्म" का शब्दार्थ इस प्रकार किया गया है "" For Personal & Private Use Only 'आधया साधु-साध्वी प्रणिधानेन यत् सचेतनं अचेतनं क्रियते, अचेतनं वा पच्यते, " न्यूयते वस्त्रादिकं विरच्यते गृहादिकं तद् आधाकर्म । " अर्थात् साधु-साध्वी के लिये सचित्त वस्तु फल आदि को अचित्त करना, अचित्त को पकाना, रांधना, वस्त्रादि बुनना (बनाना) मकान आदि बनाना, यह सब आधाकर्म दोष कहलाता है । 3 एक बार भी नदी को उल्लंघन करना साधु-साध्वी के लिये दोष का कारण हैं किन्तु www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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