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________________ समवाय २१ १०३ है। २. मैथुन सेवन करना शबल दोष है। ३. रात्रि भोजन करना शबल दोष है। इसके चार भंग बताये हैं। दिन को लाया गया और दिन (अपने पास रात में बासी रख कर दूसरे दिन) में ही खाया गया। दिन को लाया गया रात को खाया गया। रात को ग्रहण किया गया दिन को खाया गया। रात में ग्रहण किया गया और रात में ही खाया गया। ये चारों ही भङ्ग अशुद्ध हैं, उनका सेवन करना शबल है। ४. आधाकर्म आहारादि का सेवन करना शबल दोष है। ५. साधु को ठहरने के लिए मकान देने वाला सागारिक या शय्यातर कहलाता है। उसके घर से आहारादि लेना नहीं कल्पता है। जो साधु शय्यातर के घर से आहारादि लेता है। वह शबल दोष का सेवन करने वाला होता है। ६. औद्देशिक - किसी साधु साध्वी का उद्देश्य लेकर उनके लिये बनाया गया आहार आदि तथा क्रीत-साधु के निमित्त खरीदा हुआ और साधु के स्थान पर लाकर दिये गये आहारादि का सेवन करना शबल दोष है। ७. बार बार आहारादि का पच्चक्खाण करके उनको भोगना शबल दोष है। ८. छह महीनों के अन्दर एक गण को छोड़ कर दूसरे गण में जाना शबल दोष है। ९. एक महीने में तीन बार उदक लेप लगाना अर्थात् नदी उतरना शबल दोष है। १०. एक महीने के अन्दर तीन बार माया स्थान का सेवन करना शबल दोष है। माया का सेवन करना सर्वथा निषिद्ध है। यदि कोई साधु भूल से माया स्थानों का सेवन कर बैठे तो भी तीन से अधिक बार सेवन करना शबल दोष है। ११. राजपिण्ड को सेवन करना शबल दोष है। १२. जानबूझ कर प्राणियों की हिंसा करना शबल दोष है। १३. जान बूझ कर झूठ बोलना शबल दोष है। १४. जान बूझ कर चोरी करना शबल दोष है। १५. जान बूझ कर सचित्त पृथ्वी पर बैठना सोना कायोत्सर्ग करना एवं स्वाध्याय आदि करना शबल दोष है। १६. इसी प्रकार स्निग्ध और सचित्त रज वाली पृथ्वी, सचित्त शिला या पत्थर अथवा घुणों वाली लकड़ी पर बैठना, सोना, कायोत्सर्ग आदि क्रियाएं करना शबल दोष है। १७. जीवों वाले स्थान पर, प्राण, बीज, हरियाली, कीड़ी नगरा, लीलन फूलन, पानी, कीचड़, मकड़ी के जाले वाले तथा इसी प्रकार के दूसरे स्थान पर बैठना सोना, कायोत्सर्ग आदि क्रियाएँ करना शबल दोष है। १८. जान बूझ कर के मूल, कन्द, खन्ध, त्वचा (छाल), प्रवाल, पत्र, पुष्प (फूल), फल, बीज या हरीकाय आदि का भोजन करना शबल दोष है। १९. एक वर्ष के अन्दर दस बार उदक लेप करना शबल दोष है। २०. एक वर्ष के अन्दर दस बार माया स्थानों का सेवन करना शबल दोष है। २१. जान बूझ कर बार बार सचित्त जल से गीले हाथ वाले व्यक्ति आदि से अशन पान खादिम स्वादिम ग्रहण करना और भोगना शबल दोष है। अर्थात् हाथ, कुड़छी या आहार देने के बर्तन आदि में सचित्त . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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