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________________ समवाय २० ९७ कुन्थुनाथ और अठारहवें अरनाथ ये तीन पहले माण्डलिक राजा बने फिर चक्रवर्ती बने। फिर चक्रवर्ती पद को छोड़कर तीर्थङ्कर बने। पांच तीर्थङ्करों के लिए ठाणाङ्ग सूत्र के पांचवे ठाणे में "कुमारवास माझे वसित्ता" पाठ दिया है जिसका अर्थ है - कुमार अवस्था (युवराज अवस्था) में रहते हुए ही दीक्षा ली। राजा नहीं बने थे। जैसा कि - गाथा में कहा है - वीरं अरिष्टनेमिं पासं, मल्लिं च वासुपुज्जं च। एए मोत्तूण जिणे, अवसेसा आसी रायाणो ॥१॥ यहाँ कुमार शब्द का अर्थ दिगम्बर सम्प्रदाय में कुंआरा (अविवाहित) किया है। वह आगमानुकूल नहीं है। क्योंकि आगमों में मल्लिनाथ और अरिष्टनेमि इन दोनों को ही अविवाहित (कुंआरा) बतलाया है। शेष तीन वासुपूज्य, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी को विवाहित बतलाया है। उनके ससुर, पत्नी, सन्तान आदि के नाम भी बतलाये हैं। इसलिये इन तीन को अविवाहित मानना आगमानुकूल नहीं है। ___ ज्ञातासूत्र के तेरहवें अध्ययन का नाम नन्द मणियार है। 'मणियार' शब्द की संस्कृत छाया 'मणिकार' बनती है। 'मणि' का अर्थ है - हीरा पन्ना रत्न आदि जवाहरात । अतः नन्द सेठ जवाहरात का धन्धा करने वाला जौहरी था। कितनेक लोग नन्द सेठ को चूड़ी बेचने वाला लखारा कह देते हैं यह अर्थ आगमानुकूल नहीं है। . १९ वा अध्ययन जो कि पुण्डरीक कण्डरीक का है वह महाविदेह क्षेत्र का है। उपयोगी समझ कर शास्त्रकार ने यहाँ उद्धृत किया है। बीसवां समवाय वीसं असमाहि ठाणा पण्णत्ता तंजहा - दवदवचारी यावि भवइ, अप्पमजियचारी यावि भवइ, दुप्पमजियचारी यावि भवइ, अइरित्त सेज्जासणिए, राइणियपरिभासी, थेरोवघाइए, भूओवघाइए, संजलणे, कोहणे, पिट्टिमंसिए, अभिक्खणं अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ, णवाणं अहिगरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाइत्ता भवइ, पोराणाणं अहिगरणाणं खामिय विउसवियाणं पुणोदीरित्ता भवइ, ससरक्ख पाणिपाए, अकाल सज्झायकारए यावि भवइ, कलहकरे, सहकरे, झंझकरे, सूरप्पमाणभोई, एसणासमिए यावि भवइ । मुणिसुव्वए णं अरहा वीसं धणूइं उर्दू उच्चत्तेणं होत्था। सव्वे वि य घणोदही वीसं जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ता। पाणयस्स णं देविंदस्स देवरण्णो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004182
Book TitleSamvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages458
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size10 MB
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