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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन
के निमित्तभूत कर्मों को बांधते हैं (बालमरण से मरने वाले पुरुष अनेक जन्म मरण की वृद्धि
करते हैं और चिरकाल तक संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं ) ।
विवेचन
शस्त्रग्रहण, विषभक्षण आदि से आत्महत्या करना बालमरण है। इससे मरने वाला पुरुष दीर्घकाल तक जन्म मरण करता है।
उपसंहार
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इइ पाउकरे बुद्धे, णायए परिणिव्वुए।
छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धिय संमए ॥ २७४ ॥ ॥ तिबेमि ॥
कठिन शब्दार्थ - इइ - इस प्रकार, पाउकरे प्रकट करने वाले, बुद्धे - बुद्ध समस्त पदार्थों का ज्ञाता, णायए - ज्ञातपुत्र, परिणिव्वुए परिनिर्वृत्त, छत्तीसं उत्तरज्झाए - उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययनों को, भवसिद्धिय - भवसिद्धिक, संमए - सम्मत ( अभिप्रेत) ।
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भावार्थ इस प्रकार भवसिद्धिक संमत भव्य जीवों के सम्मत ( मान्य है ) ऐसे उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस अध्ययनों को प्रकट कर के बुद्ध - तत्त्वज्ञ केवलज्ञानी, 'ज्ञातपुत्र श्रमण . भगवान् महावीर स्वामी, परिनिर्वृत - निर्वाण को प्राप्त हो गये ।
विवेचन - किसी किसी प्रति में 'भवसिद्धिय संमए' के स्थान पर 'भवसिद्धिय संवुडे' ऐसा पाठ है। जिसका अर्थ इस प्रकार है - भवसिद्धिक उसी भव में मोक्ष जाने वाले संवृत्त संवर वाले भगवान् महावीर स्वामी इस उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस अध्ययनों को प्रकट करके निर्वाण को प्राप्त हो गये ।
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श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे आयुष्मन् जम्बू ! मैंने जैसा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सुना है, वैसा ही मैंने तुम से कहा है।
॥ इति जीवाजीवविभक्ति नामक छत्तीसवां अध्ययन समाप्त ॥
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॥ उत्तराध्ययन सूत्र समाप्त ॥
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