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________________ जीवाजीव विभक्ति - नभचर जीवों का स्वरूप ३६५ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 . भावार्थ - वे सभी पक्षी लोक के एक देश में कहे गये हैं, वे सर्वत्र नहीं हैं। अब इसके आगे उनका चार प्रकार का कालविभाग कहूँगा। - संतई पप्पणाइया, अपजवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साइया, सपजवसिया वि य॥१९३॥ भावार्थ - संतति-प्रवाह की अपेक्षा से सभी पक्षी अनादि और अपर्यवसित - अनन्त भी हैं और स्थिति की अपेक्षा सादि और सपर्यवसित - सान्त भी हैं। पलिओवमस्स भागो, असंखेजइमो भवे। आउठिई खहयराणं, अंतोमुहत्तं जहण्णयं ॥१९४॥ कठिन शब्दार्थ - पलिओवमस्स - पल्योपम का, भागो - भाग, असंखेज्जइमो - असंख्यातवां। ____भावार्थ - खहचर - खेचर जीवों की उत्कृष्ट आयु स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। असंखभागो पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया। पुव्वकोडि पुहत्तेणं, अंतोमुहत्तं जहणिया॥१९५॥ कायठिई खहयराणं, अंतरं तेसिमं भवे। अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहण्णयं ॥१९६॥. भावार्थ - खहचर - खेचर जीवों की, उत्कृष्ट कायस्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक पृथक्त्वं पूर्व कोटि है, जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। उनका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल का है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है। विवेचन - तिर्यंच पंचेन्द्रियों के पांच भेदों में से सिर्फ दो भेद वाले युगलिक भी होते हैंस्थलचर और खेचर। खेचर की यह स्थिति युगलिक की अपेक्षा समझनी चाहिये। खेचर की कायस्थिति में पृथक्त्व पूर्व कोटि में सात करोड़ पूर्व जितनी समझना। अर्थात् पल्योपम के असंख्यातवें भाग तथा सात करोड़ पूर्व जितनी उत्कृष्ट काय स्थिति होती है। एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥१६७॥ भावार्थ - वर्ण से, गन्ध से, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से भी इन पक्षियों के सहस्रश - हजारों विधान - भेद हो जाते हैं। - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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