SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८८ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया। पढमाए जहण्णेणं, दसवाससहस्सिया॥१६३॥ कठिन शब्दार्थ - सागरोवमं - सागरोपम, एगं - एक, दसवाससहस्सिया - दस हजार वर्ष की। ___ भावार्थ - पहली नरक में जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट एक सागरोपम की है। तिण्णेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। दोच्चाए जहण्णेणं, एगं तु सागरोवमं॥१६४॥ कठिन शब्दार्थ - तिण्णेव - तीन, सागराऊ - सागरोपम, दोच्चाए - दूसरी। भावार्थ - दूसरी नरक में जघन्य-स्थिति एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की कही गई है। सत्तेव सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। तइयाए जहण्णेणं, तिण्णेव सागरोवमा॥१६५॥ भावार्थ - तीसरी नरक में जघन्य स्थिति तीन सागरोपम की है और उत्कृष्ट सात सागरोपम की कही गई है। दस सागरोवमाऊ, उक्कोसेण वियाहिया। चउत्थीए जहण्णेणं, सत्तेव सागरोवमा॥१६६॥ . भावार्थ - चौथी नरक में जघन्य-स्थिति सात सागरोपम की है और उत्कृष्ट दस सागरोपम की कही गई है। सत्तरस सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। पंचमाए जहण्णेणं, दस चेव सागरोवमा॥१६७॥ भावार्थ - पांचवीं नरक में जघन्य स्थिति दस सागरोपम की है और उत्कृष्ट सतरह सागरोपम की कही गई है। बावीस सागराऊ, उक्कोसेण वियाहिया। छट्ठीए जहण्णेणं, सत्तरस सागरोवमा॥१६८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy