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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
प्रश्न - पानी भी गति करता है उसे गति त्रस क्यों नहीं माना गया?
उत्तर - पानी स्वतः गति नहीं करता किन्तु ढालू जमीन होने से नीचे की तरफ ढलक जाता है। इसलिए वह स्वतः गति नहीं करता। अग्नि तो ऊंचा, नीचा, तिरछा जिधर भी लकड़ी आदि मिल जाय उनको जलाती हुई आगे बढ़ जाती है। अतः स्वतः गति करने से यह गति त्रस है।
जिन जीवों के त्रस नाम कर्म का उदय है ऐसे बेइन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक जीव गति एवं लब्धि की अपेक्षा त्रस है। इसलिए इन्हें उदार त्रस कहा है।
तेजस्काय का स्वरूप दुविहा तेऊ जीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो॥१०६॥
भावार्थ - अग्निकाय के जीव दो प्रकार के सूक्ष्म और बादर, पुनः (फिर) इसी प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो प्रकार के कहे गये हैं।
बायरा जे उ पज्जत्ता, णेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी, अच्चिजाला तहेव य॥११०॥
कठिन शब्दार्थ - इंगाले - अंगार, मुम्मुरे - मुर्मुर, अगणी - अग्नि, अच्चि - अर्चि, जाला - ज्वाला।
भावार्थ - जो बादर पर्याप्त अग्निकाय के जीव हैं, वे अनेक प्रकार के कहे गये हैं। यथा - अंगार (धूम-रहित अग्नि), मुर्मुर (अग्निकण-भोभर), अग्नि, अर्चि (अग्नि-शिखा) और ज्वाला।
उक्का विजू य बोधव्वा, णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता, सुहमा ते वियाहिया॥१११॥ कठिन शब्दार्थ - उक्का - उल्का, विज्जू - विद्युत्।
भावार्थ - उल्कापात की अग्नि और विद्युत् की अग्नि अर्थात् बिजली, इस प्रकार अग्नि के अनेक भेद जानने चाहिए। वे सूक्ष्म अग्निकाय के जीव अनानात्व - नाना भेद रहित एक ही प्रकार के कहे गये हैं।
विवेचन - यहाँ बादर अग्निकाय के भेदों में बिजली (विजू) को भी गिनाया गया है। इससे यह स्पष्ट है कि - बिजली की अग्नि भी सचित्त है। लाउडस्पीकर में बिजली का प्रयोग
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