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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000 0000000000000000000000000000000000
भावार्थ - वनस्पति काय के जीव दो प्रकार के हैं - सूक्ष्म और बादर। इसी प्रकार ये वनस्पति काय के जीव पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से फिर दो प्रकार के हैं।
बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया। साहारण-सरीरा य, पत्तेगा य तहेव य॥४॥ कठिन शब्दार्थ - साहारण-सरीरा - साधारण शरीर, पत्तेगा - प्रत्येक।
भावार्थ - जो बादर, पर्याप्त हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं - १. साधारण शरीर और २. प्रत्येक शरीर।
विवेचन - प्रश्न - साधारण किसे कहते हैं?
उत्तर - साधारण नाम कर्म के उदय से एक ही शरीर को आश्रित करके जो अनन्त जीव रहते हैं वे निगोद कहलाते हैं। निगोद के जीव एक ही साथ आहार ग्रहण करते हैं, एक साथ श्वासोच्छ्वास लेते हैं और साथ ही आयु बांधते हैं और एक ही साथ शरीर छोड़ते हैं।
प्रश्न - प्रत्येक किसे कहते हैं?
उत्तर - जिन जीवों का अपना-अपना शरीर अलग-अलग हो। एक शरीर का एक जीव . स्वामी हो, उसे प्रत्येक कहते हैं।
पत्तेग-सरीराओ, णेगहा ते पकित्तिया। रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा॥६५॥
कठिन शब्दार्थ - पत्तेग-सरीराओ - प्रत्येक शरीरी, णेगहा - अनेकधा - अनेक प्रकार के, रुक्खा - वृक्ष, गुच्छा - गुच्छ, गुम्मा - गुल्म, लया - लता, वल्ली - बेल, तृणा - तृण। ...
भावार्थ - जो वनस्पति जीव प्रत्येक शरीर हैं, वे अनेकधा - अनेक प्रकार के कहे गए हैं। यथाः - वृक्ष, गुच्छ, गुल्म (नवमल्लिका आदि), लता (चम्पक लता आदि), बेल (ककड़ी आदि की बेल) और तृण (घास)।
वलया-पव्वगा कुहणा, जलरुहा ओसही तहा। हरियकाया उ बोधव्वा, पत्तेगाइ वियाहिया॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - वलया - वलय, पव्वगा - पर्वज-पर्वक, कुहणा - कुहणा, जलरुहाजलरुह, ओसही - औषधि, हरियकाया - हरितकाय। __ भावार्थ - वलय (नारियल केल आदि), पर्वज-पर्वक (गांठ से उत्पन्न होने वाले ईख बांस आदि), कुहणा (पृथ्वी को फोड़ कर उत्पन्न होने वाली छत्राकार वनस्पति), जलरुह (जल
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