________________
लेश्या - चारों गतियों में लेश्याओं की स्थिति
कठिन शब्दार्थ - दोण्णुदही - दो सागरोपम की ।
भावार्थ - तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की होती है, ऐसा जानना चाहिए।
मुहुत्तद्धं तु जहण्णा, दस उदही होइ मुहुत्तमब्भहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई, णायव्वा पम्हलेसाए ॥ ३८ ॥
कठिन शब्दार्थ - दस उदही - दस सागरोपम, मुहुत्तमब्भहिया - अंतर्मुहूर्त अधिक । भावार्थ - पद्म-लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त होती है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की होती है, ऐसा जानना चाहिए।
मुहत्तद्धं तु जहण्णा, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया ।
उक्कोसा होइ ठिई, णायव्वा सुक्कलेसाए ॥ ३६ ॥
कठिन शब्दार्थ - तेत्तीसं तेतीस, सागरा - सागरोपम, मुहुत्तहिया - अंतर्मुहूर्त अधिक । भावार्थ शुक्ल - लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सांगरोपम की होती है, ऐसा जानना चाहिए ।
विवेचन - यहाँ पर शुक्ल लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त अधिक तेतीस सागरोपम की कही है। वह पांच अनुत्तर विमान सम्बन्धी समझनी चाहिए क्योंकि शुक्ल लेश्या की इतनी लम्बी स्थिति अनुत्तर विमानों में ही पाई जा सकती है, दूसरी जगह नहीं ।
एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई वण्णिया हो ।
-
Jain Education International
३२५
-
चउसु वि गइसु एत्तो, लेसाण ठिझं तु वोच्छामि ॥ ४० ॥
. कठिन शब्दार्थ - ओहेण - ओघ अर्थात् सामान्य रूप से, वण्णिया होड़ - कही गई है, इसु - गतियों में, वोच्छामि - कहूंगा।
भावार्थ - सामान्य रूप से लेश्याओं की यह स्थिति कही गई है, यहाँ से आगे चारों गतियों में लेश्याओं की स्थिति कहूँगा ।
चारों गतियों में लेश्याओं की स्थिति
दसवास ग्रहस्साई, काऊए ठिई जहण्णिया होइ। तिण्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥४१॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org