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उत्तराध्ययन सूत्र - चौतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 न करने वाला, विनीतविनय - परम विनय भक्ति करने वाला, दान्त - इन्द्रियों का दमन करने वाला, योगवान् - स्वाध्यायादि में रत रहने वाला, उपधानवान् - उपधानादि तप करने वाला, प्रियधर्मा - धर्म में प्रेम रखने वाला, दृढधर्मा - धर्म में दृढ़ रहने वाला, पाप से डरने वाला, हितैषक - सभी प्राणियों का हित चाहने वाला, इन उपरोक्त परिमाणों से युक्त प्राणी तेजोलेश्या के परिणाम वाला होता है। ..
पयणुकोहमाणे य, मायालोभे य पयणुए। पसंतचित्ते दंतप्पा, जोगवं उवहाणवं॥२६॥ तहा पयणुवाई य, उवसंते जिइंदिए। एयजोग समाउत्तो, पम्हलेसं तु परिणमे॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - पयणुकोहमाणे - प्रतनुक्रोधमान, पयणुए - प्रतनु - अत्यंत पतले, पसंतचित्ते - प्रशान्तचित्त, दंतप्पा - दान्तात्मा, पयणुवाई - प्रतनुवादी, उवसंते - उपशान्त, . जिइंदिए - जितेन्द्रिय।
भावार्थ - प्रतनु क्रोध मान - अल्प क्रोध वाला, अल्प मान वाला और प्रतनु माया लोभ - अल्प माया वाला, अल्प लोभ वाला, प्रशान्तचित्त - शान्त चित्त वाला, दान्तात्मा - अपनी आत्मा का दमन करने वाला, योगवान् - स्वाध्यायादि करने वाला, उपधानादि तप करने वाला, प्रतनुवादी - परिमित बोलने वाला, उपशांत और जितेन्द्रिय, इन उपरोक्त गुणों से युक्त प्राणी पद्म लेश्या के परिणाम वाला होता है।
अट्ट-रुदाणि वज्जित्ता, धम्म-सुक्काणि झायए। पसंतचित्ते दंतप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु॥३१॥ सरागे वीयरागे वा, उवसंते जिइंदिए। एयजोग समाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे ॥३२॥
कठिन शब्दार्थ - अट्ट-रुद्दाणि - आर्तध्यान और रौद्रध्यान, वज्जित्ता - छोड़कर, धम्म-सुक्काणि - धर्मध्यान और शुक्लध्यान, झायए - ध्याता है, समिए - समित, सरागेसराग-अल्प राग वाला, वीयरागे - वीतरागी।
भावार्थ - जो पुरुष आर्तध्यान और रौद्रध्यान छोड़ कर, धर्मध्यान और शुक्ल-ध्यान ध्याता है, प्रशान्त चित्त वाला, दान्तात्मा-अपनी आत्मा को दमन करने वाला, पांच समितियों से
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