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. उत्तराध्ययन सूत्र - चौतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 इस प्रकार प्रत्येक लेश्या के परिणाम बहुत भेदों वाले हो जाते हैं।
लक्ष्ण द्वार पंचासवप्पवत्तो, तीहिं अगुत्तो छसु अविरओ य। तिव्वारंभपरिणओ, खुद्दो साहस्सिओ णरो॥२१॥ णिद्धंस परिणामो, णिस्संसो अजिइंदिओ। एयजोगसमाउत्तो, किण्हलेसं तु परिणमे ॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - पंचासवप्पवत्तो - पांच आस्रवों में प्रवृत्त, तीहिं अगुत्तो - ती गुप्तियों से अगुप्त, छसु अविरओ - छह काय जीवों के प्रति अविरत, तिव्वारंभपरिणओ - तीव्र आरम्भ में परिणत-रचा पचा, खुद्दो - क्षुद्र, साहस्सिओ - साहसिक, णिद्धंस परिणामोनिःशंक परिणाम वाला, णिस्संसो - नृशंस, अजिइंदिओ - अजितेन्द्रिय, एयजोगसमाउत्तो - इन योगों से समायुक्त, किण्हलेसं - कृष्णलेश्या के, परिणमे - परिणाम वाला।
भावार्थ - पांच आस्रवों में प्रवृत्ति करने वाला, तीन गुप्तियों से अगुप्त (आत्मा का गोपन न करने वाला), छह काया में अविरत (छह काया की विराधना करने वाला), तीव्र भावों से
आरम्भादि करने वाला क्षुद्र (तुच्छ), साहसिक (बिना विचारे काम करने वाला), निर्दयता के परिणाम वाला, नृशंस (क्रूर), अजितेन्द्रिय (इन्द्रियों को वश में न करने वाला) इन उपरोक्त परिणामों से युक्त मनुष्य कृष्णलेश्या के परिणाम वाला होता है।
इस्सा अमरिस अतवो, अविजमाया अहीरिया। गेही पओसे य सढे, पमत्ते रस-लोलुए सायगवेसए य॥२३॥ आरंभाओ अविरओ, खुद्दो साहस्सिओ णरो। एयजोग-समाउत्तो, णील-लेसं तु परिणमे ॥२४॥
कठिन शब्दार्थ- इस्सा-अमरिस-अतवो - ईर्ष्यालु, अमर्ष और अतपस्वी, अविज्जमाया अहीरिया - अविद्या युक्त, मायी और अह्नीक (निर्लज्ज) गेही - विषयों में गृद्ध, पओसे - द्वेषी, सढे - शढ (धूर्त) पमत्ते - प्रमादी, रस-लोलुए - रसलोलुप, सायगवेसए - सुख का गवेषक, आरंभाओ अविरओ - आरम्भ से अविरत।
भावार्थ - ईर्षालु, अमर्ष-कदाग्रही, तपस्या न करने वाला, अविद्या वाला (अज्ञानी),
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