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उत्तराध्ययन सूत्र - तेतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य। एयाओ तिण्णि पयडीओ, मोहणिजस्स दंसणे॥६॥
कठिन शब्दार्थ - सम्मत्तं - सम्यक्त्व मोहनीय, मिच्छत्तं - मिथ्यात्व मोहनीय, सम्मामिच्छत्तमेव - सम्यक्त्व-मिथ्यात्व (मिश्र मोहनीय), पयडीओ - प्रकृतियां, मोहणिज्जस्समोहनीय की।
भावार्थ - सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय और सम्यक्त्वमिथ्यात्व (मिश्र) मोहनीय, ये तीन प्रकृतियाँ दर्शन मोहनीय कर्म की हैं।
चरित्तमोहणं कम्म, दुविहं तु वियाहियं। कसाय-मोहणिजं तु, णोकसायं तहेव य॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - चरित्तमोहणं - चारित्र मोहनीय, कसायमोहणिज्जं - कषाय मोहनीय, णोकसायं - नोकषाय।
भावार्थ - चारित्र-मोहनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है। यथा - कषाय-मोहनीय और नोकषाय-मोहनीय।
विवेचन - 'कष्यन्ते, पीड्यन्ते प्राणिनो अस्मिन् इति कषः-संसारः तस्य आयः लाभः इति कषायः।'
अर्थात् - जिसमें प्राणी दुःख को प्राप्त करते हैं, उसे कष यानी संसार की प्राप्ति जिससे हो उसे 'कषाय' कहते हैं।
क्रोधादि प्रधान कषायों के साथ ही जो मानसिक विकार उत्पन्न करते हैं तथा उन्हीं के साथ फल देते हैं, उन्हें 'नोकषाय' कहते हैं।
सोलसविहभेएणं, कम्मं तु कसायज। सत्तविहं णवविहं वा, कम्मं च णोकसायजं॥११॥ .
कठिन शब्दार्थ - सोलसविहभेएणं - सोलह प्रकार का, कसायजं - कषायज-कषाय मोहनीय, सत्तविहं - सात प्रकार का, णवविहं -, नौ प्रकार का, णोकसायजं - नोकषाय मोहनीय।
भावार्थ - कषाय-मोहनीय कर्म सोलह प्रकार का है और नोकषाय-मोहनीय कर्म सात प्रकार का अथवा नौ प्रकार का है।
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