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उत्तराध्ययन सूत्र - बत्तीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - विकारोत्पत्ति के बाद उसे मोह महार्णव - महामोह रूपी सागर में डुबा देने के लिए विषय सेवनादि प्रयोजन उत्पन्न होते हैं तथा सुख को चाहने वाला राग द्वेष वाला वह जीव दुःखों को दूर करने के लिए तत्प्रत्यय-विषय-संयोगों में ही उद्यम-उद्योग करता है।
. विवेचन - उपरोक्त दो गाथाओं में साधक को वीतरागता में बाधक प्रयत्नों से सावधान रहते हुए प्रेरणा की गयी है कि वह इन्द्रिय रूपी ठगों के चक्कर में आकर कामभोग, सुखसुविधाओं के लिए प्रयत्न न करे तथा त्याग व्रत नियम से घबराए नहीं।
विरक्तात्मा का पुरुषार्थ और संकल्प विरज्जमाणस्स य इंदियत्था, सद्दाइया तावइयप्पगारा। . ण तस्स सव्वे वि मणुण्णयं वा, णिव्वत्तयंति अमणुण्णयं वा॥१०६॥
कठिन शब्दार्थ - विरज्जमाणस्स - विरक्त जीव के, सद्दाइया - शब्द आदि विषय, तावइयप्पगारा - जितने भी प्रकार के, मणुण्णयं - मनोज्ञता, ण णिव्वत्तयंति - उत्पन्न नहीं .. करते, अमणुण्णयं - अमनोज्ञता।
भावार्थ - इन्द्रियार्थ - पांच इन्द्रियों के अर्थ, शब्दादि विषय जितने भी प्रकार के इस लोक में हैं वे सभी उस विरक्त जीव के लिए मनोज्ञता अथवा अमनोज्ञता उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।
एवं ससंकप्प-विकप्पणासुं, संजायइ समयमुवट्टियस्स। अत्थे य संकप्पयओ तओ से, पहीयए कामगुणेसु तण्हा॥१०७॥
कठिन शब्दार्थ - ससंकप्प-विकप्पणासुं - संकल्प विकल्पों में, संजायइ - प्राप्ति होती है, समयं - समता, उवट्ठियस्स - उपस्थित - उद्यत होते हुए को, संकप्पयओ - संकल्प करने में, पहीयए - प्रक्षीण हो जाती है, तण्हा - तृष्णा। __भावार्थ - इस प्रकार संकल्प-विकल्पों में अर्थात् ये संकल्प-विकल्प अनर्थ के कारण हैं इस प्रकार विचार करने वाले को समता-समभाव की प्राप्ति होती है इसके पश्चात् पदार्थों में सम्यक् विचार करते हुए उस जीव की कामगुणों (कामभोगों) की तृष्णा नष्ट हो जाती है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथाओं में स्पष्ट किया गया है कि जितने भी इन्द्रिय विषय हैं वे रागद्वेष आदि युक्त जीव पर ही प्रभाव डालते हैं, विरक्त - वीतरागी आत्मा पर उनका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता। रागद्वेष जन्य संकल्प विकल्प ही अनर्थ के मूल हैं, ऐसा चिंतन करने वाला समत्वी साधक ही रागद्वेष एवं विषय विकारों की भावना को क्षीण कर सकता है।
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