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तपोमार्ग - ऊनोदरी तप
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पेडा य अद्धपेडा, गोमुत्ति-पयंगवीहिया चेव। संबुक्कावट्टायय गंतुं, पच्चागया छट्ठा॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - पेडा - पेटा (जिस गोचरी में साधु ग्रामादि को सन्दूक के समान चार कोणों में विभाजित कर बीच के घरों को छोड़ता हुआ चारों दिशाओं में समश्रेणी से गोचरी करता है), अद्धपेडा - अर्द्धपेटा (उपरोक्त प्रकार से क्षेत्र को बांट कर केवल दो दिशाओं के घरों से भिक्षा लेना), गोमुत्ति - गोमूत्रिक के समान टेढ़े मेढ़े आकार में (भूमि पर पड़े हुए गोमूत्र के आकार सरीखी भिक्षा के क्षेत्र की कल्पना करके भिक्षा लेना), पयंगवीहिया - पतंगवीथिका (पतंगिये की गति के समान अनियमित रूप से गोचरी करना), संबुक्कावट्टा - शम्बूकाव" (शंख के आवर्त की तरह वृत्त-गोल गति वाली गोचरी), आययगंतुं पच्चागया -
आयतगत्वा प्रत्यागता - लम्बा सीधा जाकर वापस लौटते (जिस गोचरी में साधु एक पंक्ति के • घरों से गोचरी करता हुआ अन्त तक जाता है और लौटते समय दूसरी पंक्ति के घरों से गोचरी लेता है, वह आगतप्रत्यागता गोचरी कहलाती है)।
भावार्थ - अब प्रकारान्तर से ऊनोदरी तप के भेद बतलाते हुए गोचरी के भेद बतलाते हैं- पेटा, अर्द्धपेटा, गोमूत्रिका इसमें साधु आमने-सामने के घरों में पहले बायीं पंक्ति में फिर दाहिनी पंक्ति में गोचरी करता है। इस क्रम से दोनों पंक्तियों के घरों से भिक्षा लेना 'गोमूत्रिका' गोचरी है। पतंगवीथिका और शम्बूकावर्ता इसके बाह्य और आभ्यन्तर दो भेद हैं, छठी आगतप्रत्यागता, यों छह प्रकार की गोचरी करना क्षेत्र की अपेक्षा ऊनोदरी तप है।
- विवेचन - गोमूत्रिका शब्द में गो शब्द दिया है। गो शब्द के दो अर्थ हैं - जब गो शब्द स्त्रीलिंग में चलता है तब गो शब्द का अर्थ होता है गाय। जब गो शब्द पुल्लिंग में चलता है तब अर्थ होता है बैल। यहाँ पर गो शब्द का अर्थ बैल लेना चाहिए। चलते हुए बैल का मूत्र आड़ा टेढ़ा पड़ता है। इस प्रकार से जो गोचरी की जाती है उसे गोमूत्रिका गोचरी कहते हैं। ..
दिवसस्स पोरिसीणं, चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे कालो। एवं चरमाणो खलु, कालोमाणं मुणेयव्वं ॥२०॥ कठिन शब्दार्थ - दिवसस्स - दिन के, पोरिसीणं - प्रहरों में, जत्तिओ - जितना,
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