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तपोमार्ग - ऊनोदरी तप 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - ओमोयरणं - अवमौदर्य-ऊनोदरी, पंचहा - पांच प्रकार का, दव्वओद्रव्य से, खेत्तकालेणं - क्षेत्र से काल से, भावेणं - भाव से, पज्जवेहि - पर्यायों से।
भावार्थ - द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से और पर्यायों से अवमौदर्य-ऊनोदरी तप संक्षेप से पाँच प्रकार का कहा गया है।
जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे। जहण्णेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण उ भवे॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - ओमं - कम, जहण्णेण - जघन्य से, एगसित्थाई - एकसिक्थ . एक कवल (ग्रास) आदि अन्नकण।
भावार्थ - जिसका जितना आहार है उसमें से जो कम करता है जघन्य से एक सिक्ट आदि - एक कण भी कम करता है तो इस प्रकार वह द्रव्य से ऊनोदरी तप होता है।
विवेचन - पुरुष का आहार बत्तीस कवल परिमाण, स्त्री का २८ और नपुंसक का २४ कवल (ग्रास-कवा) परिमाण है। जिसका जितना आहार है वह ३२ कवल परिमाण कहलाता है। फिर वह व्यक्ति गिनती की दृष्टि से थोड़े अधिक कवल में उस आहार को खावे वह उसके बत्तीस कवल परिमाण कहलाता है। मुख में जो आसानी से आ सके उसे कवल कहते हैं। किन्तु जिसको मुख में डालने पर आँखें तन जाय, गाल फूल जाय उसे कवल नहीं कहते हैं। क्योंकि यह तो जबर्दस्ती मुँह में लूंसना है। कवल का परिमाण औपपातिक सूत्र और भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक १ में इस प्रकार बतलाया है 'कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले' नवांगी टीकाकार श्री अभयदेवसूरि ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है - “पहले कवल का शब्दार्थ करते हुए लिखा है कि - ‘कुक्कडी (मुर्गी) के अण्डे के प्रमाण' फिर उसका भावार्थ देते हुए लिखा है कि - उपरोक्त तो केवल शब्दार्थ मात्र है। भावार्थ तो यह है कि - मुख में जो
आसानी से समा सके। गाल फूले नहीं, आँखें तणे नहीं किन्तु सुख पूर्वक मुख में रखा जा सके, उसे कवल (ग्रास) कहते हैं।"
गामे णगरे तह रायहाणी, णिगमे य आगरे पल्ली। खेडे कब्बड-दोणमुह-पट्टण-मडंब संवाहे॥१६॥ आसमपए विहारे, सण्णिवेसे समाय घोसे य। थलिसेणाखंधारे, सत्थे संवट्ट-कोट्टे य॥१७॥
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