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माया-1
भावार्थ
- विजएणं भंते! जीवे किं जणयइ ?
हे भगवन्! माया विजय
प्राप्ति होती है ?
प्रश्न
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• उत्तराध्ययन सूत्र उनतीसवाँ अध्ययन
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६९. माया - विजय
की प्राप्ति होती है ?
माया- विजएणं अज्जवं जणयइ, माया-वेयणिज्जं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं
च णिज्जरे ॥ ६६ ॥
कठिन शब्दार्थ माया- विज वेयणिज्जकम्मं - माया वेदनीय कर्म का ।
भावार्थ - उत्तर माया विजय माया को जीतने से आर्जव ( सरलता) गुण की प्राप्ति होती है और सरलता को प्राप्त हुआ जीव माया वेदनीय- माया के द्वारा भोगने योग्य कर्मों का बन्ध नहीं करता और पहले बंधे हुए कर्मों की निर्जरा कर देता है ।
७०. लोभ- विजय
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लोभ - विजएणं भंते! जीवे किं जणयइ ?
भावार्थ - प्रश्न
माया को जीतने से जीव को किस गुण
माया विजय से, अज्जवं
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लोभ-विजएणं संतोसं जणयइ, लोभ-वेयणिजं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णिज्जरेइ ॥ ७० ॥
आर्जव, माया
हे भगवन्! लोभविजय - लोभ को जीतने से जीव को किस गुण
की
कठिन शब्दार्थ - लोभ - विजएणं - लोभ-विजय से, संतोसं - संतोष की, लोभवेयणिज्जं कम्मं - लोभ वेदनीय कर्मों का ।
भावार्थ - उत्तर - लोभविजय - लोभ को जीतने से सन्तोष गुण की प्राप्ति होती है और सन्तोषी जीव लोभ-वेदनीय - लोभ के द्वारा भोगने योग्य कर्मों का बन्ध नहीं करता और पहले बन्धे हुए लोभजन्य कर्मों की निर्जरा कर देता है।
विवेचन क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चार कषाय हैं। क्रोध मोहनीय, मान मोहनीय, माया मोहनीय और लोभ मोहनीय के उदय से होने वाला जीव का परिणाम - विशेष क्रमशः क्रोध, मान, माया और लोभ है। क्रोधादि कषायों के परिणाम अत्यंत भयंकर,
दुःखद
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