________________
१५२
उत्तराध्ययन सूत्र - अट्ठाईसवाँ अध्ययन
एए चेव उ भावे, उवइट्ठे जो परेण सद्दह ।
'छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइत्ति णायव्वो ॥ १६ ॥
कठिन शब्दार्थ - उवट्ठे उपदेश से, परेण - पर-दूसरे के, छउमत्थेण छद्मस्थ से, जिणेण - जिन से
भावार्थ - केवली भगवान् के पास से अथवा दूसरे छद्मस्थ गुरुओं से उपदेश सुन कर जो इन जीवादि तत्त्वों की श्रद्धा करता है वह 'उपदेश रुचि' वाला है, ऐसा जानना चाहिए।
२. उपदेश रुचि
३. आज्ञा रुचि
रागो दोसो मोहो, अण्णाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो, सो खलु आणारुई णामं ॥ २० ॥ - कठिन शब्दार्थ - रागो अवगयं - अपगत- दूर, आणाए भावार्थ - जिसके रागद्वेष,
अज्ञान,
राग,
दोसो - द्वेष, मोहो - मोह, अण्णाणं आज्ञा से, रोयंतो - जीवादि पदार्थों पर रुचि श्रद्धा रखता है । मोह और अज्ञान एक देशतः नष्ट हो गया है और आचार्य की आज्ञा मात्र से ही जिसको जीवादि तत्त्वों को जानने की रुचि होती है, वह निश्चय से 'आज्ञा रुचि' है ।
-
Jain Education International
विवेचन प्रज्ञापना सूत्र पद में 'आज्ञा रुचि' का अर्थ इस प्रकार दिया है- 'जो हेतु नहीं जानता हुआ केवल जिनाज्ञा से ही प्रवचन पर रुचि श्रद्धा रखता है और समझता है कि जिनेश्वर भगवान् द्वारा उपदिष्ट तत्त्व ऐसे ही हैं, अन्यथा नहीं, वह आज्ञा रुचि है । '
४. सूत्र रुचि
जो सुत्तमहिज्जंतो, सुएण ओगाहइ उ सम्मत्तं ।
अंगेण बाहिरेण व, सो सुत्तरुइत्ति णायव्वो ॥ २१॥
कठिन शब्दार्थ - सुत्तं - श्रुत को, अहिज्जंतो- अध्ययन करता हुआ, सुएण - सूत्रों से, ओगाहइ - अवगाहन करता है, सम्मत्तं
सम्यक्त्व, अंगेण - अंगप्रविष्ठ, बाहिरेण
अंग बाह्य ।
-
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org