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मोक्खमग्गगइंणामंअहावीसइमंअज्झयणं मोक्षमार्ग गति नामक अहाईसवां अध्ययन
मोक्ष के चार साधन हैं - १. सम्यग्-ज्ञान २. सम्यग्-दर्शन ३. सम्यक्-चारित्र और ४. सम्यक्-तप। तप को सम्यक्-चारित्र में अन्तर्भूत कर लेने से सम्यग्-ज्ञान, सम्यग्-दर्शन और सम्यक्-चारित्र रूपी रत्नत्रय मोक्षमार्ग कहलाता है।
इस अध्ययन में रत्नत्रयी रूप मोक्षमार्ग की ओर गति प्रवृत्ति का निरूपण होने से इसका नाम 'मोक्षमार्ग गति' रखा गया है। प्रस्तुत अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार है -
मोक्षमार्ग का स्वरूप मोक्खमग्गगई तच्चं, सुणेह जिणभासियं। चउकारणसंजुत्तं, णाण-दंसण-लक्खणं॥१॥
कठिन शब्दार्थ - मोक्खमग्गगई - मोक्षमार्ग की गति को, तच्चं - तथ्य रूप-यथार्थ, सुणेह - सुनो, जिणभासियं - जिन-भाषित, चउकारणसंजुत्तं - चार कारणों से युक्त, णाण-दसण-लक्खणं - ज्ञान और दर्शन के लक्षण वाली। . . __भावार्थ - जिनेन्द्र भगवान् द्वारा भाषित, कथित, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्-दर्शन, सम्यक्-चारित्र और सम्यक्-तप इन चार कारणों से संयुक्त अर्थात् इन चार कारणों से प्राप्त होने वाली, ज्ञानदर्शन लक्षण वाली तथ्य-यथार्थ मोक्षमार्ग गति को सुनो अर्थात् मैं मोक्ष मार्ग गति नामक अध्ययन का वर्णन करता हूँ, सो तुम सुनो। . विवेचन - इस प्रथम गाथा में ज्ञान, दर्शन को लक्षण बताया गया है। अर्थात् ज्ञानादि चार कारण साधक अवस्था में होते हैं तथा ज्ञान एवं दर्शन तो स्वाभाविक रूप से सदा सर्वदा जीव के मौलिक लक्षण होने से एवं मुक्ति के मूल कारण भी ये दोनों ही होने से इन दोनों को . ही लक्षण बताया गया है। साध्य अवस्था में ज्ञान और दर्शन गुण ही विद्यमान रहते हैं।
णाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गोत्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं॥२॥
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