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उत्तराध्ययन सूत्र - सत्ताईसवाँ अध्ययन CONOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO00000
अह सारही विचिंतेइ, खलुंकेहिं समागओ। किं मज्झ दुट्ठसीसेहिं, अप्पा मे अवसीयइ॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - सारही - सारथी, विचिंतेइ - विचार करते हैं, समागओ - युक्त होने पर, दुट्ठसीसेहिं - दुष्ट शिष्यों से, अप्पा - आत्मा, अवसीयइ - अवसाद-खेद पाती है।
भावार्थ :- जिस प्रकार- सारथी - आलसी बैलों को हांकने वाला गाड़ीवान् दुःखित होता है उसी प्रकार गलियार बैल के समान अविनीत शिष्यों से खेद को प्राप्त हुए गर्गाचार्य विचार करते हैं कि इन दुष्ट शिष्यों से मुझे क्या लाभ है? प्रत्युतः इनके संसर्ग से मेरी आत्मा खेदित
और क्लेशित होती है। अतः इनके संग का त्याग कर के मुझे अपनी आत्मा का कल्याण करना ही श्रेष्ठ है। ___ विवेचन - प्रस्तुत गाथाओं (क्रं. ६ से १५ तक) में गर्गाचार्य द्वारा अपने अविनीत शिष्यों की धृष्टता एवं अविनीतता का चित्रण किया गया है।
. गर्गाचार्य ने चिन्तन किया कि इन धृष्ट और अविनीत शिष्यों से मेरा कौनसा इहलौकिक या पारलौकिक प्रयोजन सिद्ध होता है? उल्टे, इन्हें प्रेरणा देने पर मेरे आत्मकृत्य में हानि होती है। अतः इन कुशिष्यों को छोड़ कर मुझे स्वयं उद्यत विहारी हो जाना ही श्रेष्ठ है।
..... कुशिष्यों का त्याग जारिसा मम सीसाओ, तारिसा गलिगदहा। 'गलिगद्दहे जहिताणं, दढं पगिण्हइ तवं॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - जारिसा - जैसे, सीसाओ - शिष्य, तारिसा - वैसे, गलिगइहा - गलि गर्दभ, चइत्ताणं - छोड़ कर, दढं - दृढ़, पगिण्हइ - स्वीकार किया, तवं - तप को।
भावार्थ - जिस प्रकार गलियार गधे होते हैं वैसे ही मेरे ये शिष्य हैं। इस प्रकार विचार .. कर गर्गाचार्य गलियार गधों के समान अपने अविनीत शिष्यों को छोड़ कर दृढ़तापूर्वक तप-संयम का पालन करने लगे।
विवेचन - ढीठ गधों का यह स्वभाव होता है कि मंद बुद्धि होने के कारण उन्हें बार बार प्रेरणा देने पर भी वे प्रायः चलते नहीं, इसी प्रकार गर्गाचार्य के बार बार प्रेरणा देने पर भी उनके शिष्य सन्मार्ग पर नहीं चलते थे अतः आगमकार ने उन्हें 'गलि-गर्दभ' की उपमा दी है। .
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