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________________ खलुंकीय - अविनीत शिष्य और दुष्ट बैल टोकरी के सब पानों को देखता है और सड़े हुए पान को निकाल फेंकता है। इसी प्रकार साधुओं के समूह में कोई एक साधु दोष सेवी शिथिलाचारी हो तो वह सारे साधु समूह को शिथिलाचारी बना देता है। अतः आचार्य का कर्त्तव्य है कि ऐसे शिथिलाचारी (जो प्रायश्चित्त देने पर भी बारबार दोष सेवन करता है) साधु को गच्छ से बाहर कर देना चाहिए, जिससे कि दूसरे साधुओं की सुरक्षा हो सके। विनीत शिष्य से संसार पार वहणे वहमाणस्स, कंतारं अइवत्तइ । जोए वहमाणस्स, संसारो अइवत्तइ ॥ २ ॥ कठिन शब्दार्थ व जता हुआ, कंतारं महावन (अटवी) को, अइवृत्तइ पार हो जाता है, जोए - संयम - योग में । भावार्थ - गर्गाचार्य अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार गाड़ी में जोता हुआ विनीत बैल, गाड़ी और गाड़ीवान् दोनों को ले कर सुखपूर्व कान्तार - अटवी को पार कर जाता है, उसी प्रकार योग-संयम मार्ग में प्रवृत्त होता हुआ विनीत शिष्य, स्वयं और गुरु दोनों ही संसार से पार हो जाते हैं। विवेचन - शिष्यों के विनीत भाव एवं संयम मार्ग में सम्यक् गति प्रवृत्ति को देख कर गुरु भी समाधिमान् होकर शिष्य के साथ संसार सागर को पार कर जाते हैं । अविनीत शिष्य और दुष्ट बैल - Jain Education International - - वाहन में, वहमाणस्स - - खलुंके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सा | असमाहिं च वेएइ, तोत्तओ से य भज्जइ ॥ ३ ॥ कठिन शब्दार्थ - खलुंके- दुष्ट बैलों को, जोएइ - जोतता है, विहम्माणो - प्रताड़न करता हुआ, किलिस्सइ क्लेश पाता है, असमाहिं - असमाधि को, वेएइ अनुभव करता है, तोत्तओ - तोत्रक- चाबुक, भज्जइ - टूट जाता है। १३५ For Personal & Private Use Only - कान्तार भावार्थ - जो गाड़ीवान् धृष्ट और दुष्ट (गलियार - आलसी अविनीत) बैलों को गाड़ी में जोतता है। वह उन्हें मारते-मारते थक जाता है, क्लेशित और खेदित होता है, असमाधि ( दुःख) का अनुभव करता है और मारते-मारते उस गाड़ीवान् का चाबुक भी टूट जाता है। www.jalnelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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