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उत्तराध्ययन सूत्र - छब्बीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - अइयारं - अतिचार, चिंतिज्ज - चिंतन करे, अणुपुव्वसो - अनुक्रम से, णाणम्मि - ज्ञान में, चरित्तम्मि - चारित्र में लगे हुए। - भावार्थ - ज्ञान, दर्शन और चारित्र में लगे हुए दिवस सम्बन्धी अतिचार का अनुक्रम से चिन्तन करे।
विवेचन - ३६ वीं गाथा के पूर्वार्द्ध तक दिनचर्या का विधान करके उसी गाथा के उत्तरार्द्ध में रात्रिचर्या का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं - प्रथम आवश्यक की आज्ञा लेकर कायोत्सर्ग करे, जो शारीरिक और मानसिक दुःखों से छुटकारा दिलाने वाला है। कायोत्सर्ग में दिनभर में रत्नत्रयी में जो भी अतिचार लगे हों, उनका विचार करे। ......
पारियकाउस्सगो, वंदित्ताण तओ गुरुं। देवसियं तु अइयारं, आलोएज जहक्कमं॥४१॥ .
कठिन शब्दार्थ - पारियकाउस्सग्गो - कायोत्सर्ग को पार कर, आलोएज्ज - आलोचना करे, जहक्कम्मं - यथाक्रम से। ___ भावार्थ - कायोत्सर्ग को पार कर फिर गुरु महाराज को वन्दना करके दिवस सम्बन्धी . अतिचारों की यथाक्रम से आलोचना करे।
पडिक्कमित्तु णिस्सलो, वंदित्ताण तओ गुरुं। काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्व-दुक्खविमोक्खणं॥४२॥
कठिन शब्दार्थ - पडिक्कमित्तु - प्रतिक्रमण करके, णिस्सलो - शल्य रहित होकर, वंदित्ताण - वंदना करके।
भावार्थ - प्रतिक्रमण करके शल्यरहित हो कर फिर गुरु महाराज को वन्दना करे, तत्पश्चात् सभी दुःखों से छुड़ाने वाला कायोत्सर्ग करे।
पारियकाउस्सगो, वंदित्ताण तओ गुरुं। थुइमंगलं च काऊणं, कालं संपडिलेहए॥४३॥ कठिन शब्दार्थ - थुइमंगलं - स्तुति मंगल, संपडिलेहए - प्रतीक्षा करे।
भावार्थ - कायोत्सर्ग पार कर फिर गुरु महाराज को वन्दना करके और सिद्ध भगवान् की नमोत्थुणं रूप स्तुति मंगल करके स्वाध्याय के काल की प्रतीक्षा करे अर्थात् स्वाध्याय का समय आने पर स्वाध्याय करे।
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