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यज्ञीय : वेदवेत्ता विजयघोष 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
वेदवेत्ता विजयघोष अह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे। विजयघोसित्ति णामेणं, जणं जयइ वेयवी॥४॥
कठिन शब्दार्थ - पुरीए - नगरी में, विजयघोसित्ति णामेणं - विजयघोष नाम का, जण्णं - यज्ञ, जयइ - करता था, वेयवी - वेदवित्-वेद का ज्ञाता।
भावार्थ - अथ इसके बाद उस समय उस नगरी में वेदवित्-वेद का ज्ञाता विजयघोष नाम का एक ब्राह्मण यज्ञ करता था।
विवेचन - जिस समय जयघोष मुनि वाणारसी नगरी के मनोरम उद्यान में विराजमान थे उस समय उस नगरी में उनके गृहस्थ-पक्षीय छोटे भ्राता विजयघोष ब्राह्मण ने एक यज्ञ का आयोजन कर रखा था। ____ गंगा तट पर नित्यकर्म करते हुए जयघोष को सर्प-मूषक वाली घटना देखकर वैराग्य उत्पन्न होना और जंगल में जाकर उनका एक मुनि के पास धर्म में दीक्षित होना आदि किसी भी घटना का विजयघोष को ज्ञान नहीं था। भ्राता के गंगाजी से लौटकर न आने और इधर-उधर ढूँढने पर भी न मिलने से विजयघोष ने यही निश्चय कर लिया कि मेरे भ्राता गंगा में बह गये और मृत्यु को प्राप्त हो गये। इस निश्चय के अनुसार विजयघोष ने अपने भाई का शास्त्रविधि के अनुसार सारा और्द्धदैहिक क्रियाकर्म किया। जब जयघोष को मरे अथवा गये को अनुमानतः चार वर्ष हो गये, तंब विजयघोष ने अपने भाई का चातुर्वार्षिक श्राद्ध करना आरम्भ किया। यही उसका यज्ञानुष्ठान था, ऐसी वृद्ध परपंरा चली आती है। कुछ भी हो विजयघोष का यज्ञ करना तो प्रमाणित ही है। फिर वह चाहे भ्राता के निमित्त हो अथवा और किसी उद्देश्य से हो।
अह से तत्थ अणगारे, मासक्खमण-पारणे। विजयघोसस्स जण्णम्मि, भिक्खमट्ठा उवट्टिए॥५॥
कठिन शब्दार्थ - मासक्खमण पारणे - मासखमण के पारणे के दिन, जण्णम्मि - यज्ञ शाला में, भिक्खमट्ठा - भिक्षा के लिए, उवट्टिए - उपस्थित हुए।
- भावार्थ - अब वे जयघोष मुनि मासखमण के पारणे के दिन विजयघोष ब्राह्मण की यज्ञशाला में भिक्षा के लिए पधारे।
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