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': यज्ञीय - जयघोष-एक परिचय 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
अर्थात् बुद्धिमान् का कर्त्तव्य है कि मानो मृत्यु ने पीछे से केश पकड़ रखे हैं। न मालूम कब वह एक झटका देकर प्राणी को अपना ग्रास बना लेगी ऐसा सोचकर धर्माचरण में विलंब नहीं करना चाहिये। क्योंकि -
"एक्को हु धम्मो णरदेव ताणं, ___ण विज्जइ अण्णमिहेह किंचि।" ____अर्थ - माता, पिता, स्त्री, पुत्र, कुटुम्ब, परिवार इस जीव के लिये कोई भी शरणभूत नहीं होता है। मात्र एक धर्म ही प्राणी के लिए त्राण और शरणरूप है। इस प्रकार के धर्म उपदेश से जयघोष को वैराग्य उत्पन्न हो गया और पांच महाव्रत धारण करने रूप जैन दीक्षा अंगीकार कर ली। फिर तप संयम में पुरुषार्थ करने लगे। एक समय विचरते हुए वे बनारस पधारे। उनके मासखमण की तपस्या थी। उस समय उनका सांसारिक छोटा भाई विजयघोष यज्ञ कर रहा था। उसको सद्बोध देने के लिए यज्ञ शाला में पहुँचे, उनके साथ जो तात्त्विक प्रश्नोत्तर हुए, उनका विस्तृत वर्णन इस अध्ययन में हैं। ___सच्चे धर्म यज्ञ का स्वरूप दिखाये जाने के कारण इस अध्ययन का नाम 'यज्ञीय' रखां गया है। यज्ञ मण्डप में जयघोषमुनि का याज्ञिक विद्वानों के साथ जो वार्तालाप हुआ, उसमें सच्चे ब्राह्मण का स्वरूप, सच्चे श्रमण की परिभाषा और वास्तविक यज्ञ का स्वरूप समझाया गया है। प्रस्तुत है इस अध्ययन की प्रथम गाथा -
- जयघोष-एक परिचय माहण-कुल-संभूओ, आसी विप्पो महाजसो।। जायाई जम्मजण्णम्मि, जयघोसित्ति णामओ॥१॥ ..
कठिन शब्दार्थ - माहणकुल संभूओ - ब्राह्मण कुल में उत्पन्न, आसी - था, विप्पो - विप्र-ब्राह्मण, महायसो - महायशस्वी, जायाई - यायाजी - यज्ञ करने वाले, जम्मजण्णम्मि - यम रूप यज्ञ में, जयघोसित्ति णामओ - जयघोष नामक। - भावार्थ - ब्राह्मण कुल में उत्पन्न महायशस्वी यम-नियम रूप भाव यज्ञ करने वाले जयघोष नाम के विप्र-ब्राह्मण थे।
विवेचन - इस गाथा में जयघोष का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। यथा - वह ब्राह्मण
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