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चतुरंगीय - दस अंगों सहित उत्पत्ति
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कारण वे अपनी मृत्यु को भी बिल्कुल भूल जाते हैं। उन्हें यह भान ही नहीं रहता कि पुण्य कर्म- जन्य फल की समाप्ति पर कभी हमारा यहाँ से च्यवन भी होगा? वे तो अपने को मृत्यु से सदा रहित मानते हुए वहाँ पर रहते हैं। __ अप्पिया देवकामाणं, कामरूव विउविणो।
उर्ल्ड कप्पेसु चिटुंति, पुव्वा वाससया बहू॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - अप्पिया - प्राप्त हुए, देवकामाणं - देव काम-भोगों को, कामरूवइच्छानुसार, विउव्विणो - विकुर्वणा करने वाले, कप्पेसु - कल्पों (विमानों) में, चिटुंति - ठहरते हैं, पुव्वा - पूर्वो, वाससया - सौ वर्षों तक।
भावार्थ - दिव्यांगना स्पर्श आदि देव सम्बन्धी कामों को प्राप्त हुए और इच्छानुसार विविध रूप बनाने की शक्ति वाले वे देव सैकड़ों पूर्व वर्षों तक ऊपर सौधर्मादि एवं ग्रैवेयकादि विमानों में रहते हैं।
विवेचन - तप और संयम के प्रभाव से देवमति को प्राप्त हुए जीव को नाना प्रकार के रूप बनाने की लब्धि और दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है। पूर्वो के वर्षों की गणना टीकाकार ने इस प्रकार दी है - 'पूर्वाणि वर्ष सप्तति कोटि लक्षषट् पंच शत् कोटि सहस्रमितानि' अर्थात् ७० लाख ५६ हजार करोड़ वर्ष का एक पूर्व होता है, ऐसे असंख्यात पूर्वो तक जीव वहाँ देवलोंक में रहता है। .....
. .. दस अंगों सहित उत्पत्ति - तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा आउक्खए चुया।
उति माणुसं जोणिं, से दसंगेऽभिजायइ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - ठिच्चा - रह कर, जहाठाणं - यथा स्थान, आउक्खए - आयु के क्षय होने पर, चुया - चव कर, उवेंति - प्राप्त करते हैं, माणुसं जोणिं - मनुष्य योनि को, . दसंगे - दस अंगों की, अभिजायइ - प्राप्ति होती है। ..
भावार्थ - वे देव वहाँ देवलोक में अपने-अपने स्थान पर रहे हुए आयु क्षय होने पर वहाँ से चव कर मनुष्य-योनि प्राप्त करते हैं, वहाँ उन्हें दस अंगों की प्राप्ति होती है।
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