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________________ तीसरा अध्ययन ***** भावार्थ - कदाचित् धर्म का श्रवण पा कर भी उस पर श्रद्धा - रुचि होना अत्यन्त दुर्लभ है, क्योंकि न्याय संगत सम्यग्दर्शनादि रूप मोक्षमार्ग सुन कर भी बहुत से मनुष्य उससे भ्रष्ट हो जाते हैं। ६० *** विवेचन प्रस्तुत गाथा में स्पष्ट किया गया है कि धर्म श्रवण के साथ श्रद्धा का होना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए उक्त गाथा में न्याय मार्ग का उल्लेख किया है। सम्यग्दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र का अनुसरण न्याय मार्ग है। इसी को दूसरे शब्दों में मोक्षमार्ग. कहा है। न्याय मार्ग को सुन कर और समझ कर भी बहुत से जीव श्रद्धा के न होने पर धर्म मार्ग से च्युत हो जाते हैं, इसलिए श्रद्धा का होना परम आवश्यक है। संयम में पराक्रम . उत्तराध्ययन सूत्र - सुइं च लद्धुं सद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणा वि, णो य णं पडिवज्जइ ॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - बहवे - बहुत से, रोयमाणा पडिवज्जइ - सम्यक् रूप से स्वीकार नहीं करते। Jain Education International माणुसत्तम्मि आयाओ, जो धम्मं सोच्च सद्दहे । तवस्सी वीरियं लद्धुं, संवुडे गिद्धुणे रयं ॥११॥ भावार्थ - मनुष्य जन्म, धर्म-श्रवण और धर्म - श्रद्धा पा कर भी संयम में पराक्रम करना - शक्ति लगाना और भी दुर्लभ है, क्योंकि बहुत-से मनुष्य धर्म एवं संयम को अच्छा तो समझते हैं और रुचिपूर्वक सुनते भी हैं। किन्तु उसे आचरण में नहीं ला सकते । विवेचन कदाचित् किसी जीव को मनुष्य जन्म, धर्म का श्रवण और धर्म में पूर्ण अभिरुचि (श्रद्धा) ये तीनों साधन मिल भी जाएं तो भी इनके साथ वीर्य - संयम में पुरुषार्थ मिलना और भी कठिन है। अतएव बहुत से जीवों को धर्म में रुचि होते हुए भी वे संयम में पुरुषार्थ नहीं कर सकते क्योंकि जीव के संयम विषयक पुरुषार्थ का प्रतिबंधक चारित्र मोहनीय कर्म है । चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय या क्षयोपशम हुए बिना जीव चारित्र ग्रहण नहीं कर सकता। इसलिए आगमकारों ने वीर्य पुरुषार्थ को परम दुर्लभ कहा है। दुर्लभ चतुरंग प्राप्ति का फल रुचि रखते हुए, वि भी, णो For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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