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उत्तराध्ययन सूत्र - पहला अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
दूसरे (दोनों) के लिए सप्रयोजन सावध भाषा न बोले, निरर्थक वचन न कहे और मर्मभेदी वचन भी न कहे।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में साधु के लिए वचन गुप्ति के संरक्षण का उपदेश दिया गया है। विचारशील साधु कभी भी सावध भाषा, निरर्थक भाषा और मर्मयुक्त भाषा का अपने, दूसरे अथवा उभय के लिए व्यवहार न करे तथा सदैव सत्य, सार्थक, हित और मित बोलने का ही प्रयत्न करे।
संसर्गजन्य दोष परिहार समरेसु अगारेसु, संधिसु य महापहे। एगो एगित्थिए सद्धिं, णेव चिट्टे ण संलवे॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - समरेसु - लोहारशाला में, अगारेसु - घरों में, संधीसु - दो घरों की संधियों में, महापहे - महापथ-राजमार्ग में, एगो - अकेला साधु, एगत्थिए - अकेली स्त्री के, सद्धिं - साथ, णेव चिट्टे - खड़ा न रहे, ण संलवे - न बोले।
___ भावार्थ - लोहारशाला में, सूने घरों में, दो घरों के बीच में और राजमार्ग में अकेला साधु अकेली स्त्री के साथ न खड़ा रहे और न बातचीत ही करे।
विवेचन - पूर्व की गाथाओं में आत्मगत दोषों के त्याग का उपदेश दिया गया है जब कि प्रस्तुत गाथा में संसर्गजन्य दोषों के त्याग का उपदेश दिया गया है।
जहाँ दोष की संभावना हो अथवा प्रवचन की लघुता होती हो, वैसे स्थानों में एकान्त न होते हुए भी, साधु को स्त्री सम्पर्क से बचना चाहिये।
गुरु का अनुशासन जं मे बुद्धाणुसासंति, सीएण फरुसेण वा। मम लाभुत्ति पेहाए, पयओ तं पडिस्सुणे॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - जं - जो, मे - मुझे, बुद्धा - आचार्यादि गुरुजन, अणुसासंति - शिक्षा देते हैं, सीएण - शीतल वचनों से, फरुसेण - कठोर वचनों से, मम - मेरा, लाभुत्ति - लाभ है इस प्रकार, पेहाए - विचार करके, पयओ - प्रयत्न से युक्त, तं - उसको, पडिस्सुणे - स्वीकार करे, सुने।
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