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.. उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन **************************************************************
निष्प्रतिकर्मता रूप कष्ट तं बिंत अम्मापियरो, छंदेणं पुत्त! पव्वया। णवरं पुण सामण्णे, दुक्खं णिप्पडिकम्मया॥७६॥
कठिन शब्दार्थ - तं - उससे, बिंत - कहने लगे, अम्माप्रियरो - माता पिता, छंदेणंस्वेच्छा पूर्वक, पव्वया - प्रव्रज्या, णवरं - इतना विशेष है, सामण्णे - साधुपने में, णिप्पडिकम्मया - निष्प्रतिकर्मता - रोगादि होने पर चिकित्सा न कराना।
भावार्थ - मृगापुत्र का उपरोक्त कथन सुन कर उसके माता-पिता उससे कहने लगे कि हे पुत्र! यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो अपनी इच्छानुसार प्रव्रज्या अंगीकार करो किन्तु संयम लेने के पश्चात् साधुपने में निष्प्रतिकर्मता - यदि शरीर में कोई रोग उत्पन्न हो जाय, तो उसका प्रतीकार नहीं कराना, यह बड़ा कष्ट है।
नोट - यह कथन जिनकल्प की अपेक्षा से है। जिनकल्पी मुनि रोगादि के होने पर भी उसकी निवृत्ति के लिए किसी प्रकार की औषधि का उपयोग नहीं करते। किन्तु जो स्थविरकल्पी हैं, वे अपनी इच्छा से किसी औषधि का भले ही उपयोग न करें, परन्तु निरवद्य औषधोपचार का उनके लिए प्रतिषेध नहीं है।
मृगचर्या और साधुचर्या सो बेइ अम्मापियरो, एवमेयं जहाफुडं। पडिकम्मं को कुणइ, अरण्णे मियपक्खिणं॥७७॥
कठिन शब्दार्थ - जहाफुडं - जैसा आपने कहा, पडिकम्मं .- प्रतिकर्म (चिकित्सा), को - कौन, कुणइ - करता है, अरण्णे - अरण्य - जंगल में, मियपक्खिणं - मृग आदि पशु और पक्षियों की। ___भावार्थ - वह मृगापुत्र कहने लगा कि हे माता-पिताओ! यह इसी प्रकार है जिस प्रकार आपने बतलाया है, किन्तु आप यह बतलावें कि अरण्य-वन में मृग और पक्षियों के रोग का प्रतिकर्म-उपचार कौन करता है? अर्थात् कोई नहीं करता। फिर भी वे जीते हैं और आनन्दपूर्वक यथेच्छ विचरते हैं।
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