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उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन
.. भावार्थ - जिस प्रकार बालू रेत का ग्रास नीरस होता है उसी प्रकार विषय-भोगों में गृद्ध बने हुए मनुष्यों के लिए संयम नीरस है और जिस प्रकार तलवार की धार पर चलना कठिन है । उसी प्रकार तप संयम का आचरण करना भी बड़ा कठिन है।
अहीवेगंतदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त! दुच्चरे। जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्करं॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - अहीवेगंतट्ठिीए - सांप की तरह एकान्त (एकाग्र) दृष्टि से, चरित्तेचारित्र धर्म में, दुच्चरे - चलना दुष्कर है, लोहमया - लोहे के, जवा - यव (जौ), चावेयव्वा - चबाना, सुदुक्करं - अत्यंत कठिन है।
भावार्थ - हे पुत्र! सर्प की तरह अर्थात् जिस प्रकार साँप एकाग्र दृष्टि रख कर चलता है उसी प्रकार एकाग्र मन रख कर संयम-वृत्ति में चलना कठिन है और जिस प्रकार लोह के जौ अथवा चने चबाना अत्यन्त कठिन है उसी प्रकार संयम का पालन करना भी कठिन है।
जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करा। तहा दुक्करं करेउं जे, तारुण्णे समणत्तणं॥४०॥
कठिन शब्दार्थ - जहा - जैसे, अग्गिसिहा - अग्निशिखा को, दित्ता - दीप्तप्रज्वलित, पाउं - पीना, करेउं - करता है, तारुण्णे - युवावस्था में, समणत्तणं - श्रमण धर्म का पालन।
भावार्थ - जिस प्रकार दीप्त-जलती हुई अग्नि की ज्वाला शिखा को पीना अत्यन्त कठिन होता है उसी प्रकार तरुण अवस्था में साधुपना पालन करना अत्यन्त कठिन है।
जहा दुक्खं भरेउं जे, होइ वायस्स कोत्थलो। तहा दुक्खं करेउं जे, कीवेणं समणत्तणं॥४१॥
कठिन शब्दार्थ - दुक्खं - कठिन, भरेउं - भरना, वायस्स - हवा से, कोत्थलो - कोत्थल-थैला, कीवेणं - कायर के द्वारा।
भावार्थ - जिस प्रकार कपड़े के कोथले को हवा से भरना कठिन है उसी प्रकार कृपणकायर एवं निर्बल से श्रमणत्व-साधुपना पाला जाना दुष्कर है।
जहा तुलाए तोलेडं, दुक्करो मंदरो गिरी। नटा ढियीसंकं. दुम्करं सम्णतणं॥४२॥
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