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मृगापुत्रीय - धर्म का पाथेय
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ही, पवज्जइ - चल देता है, गच्छंतो - जाता हुआ, दुही - दुःखी, छुहातहाए - भूख और प्यास से, पीडिओ - पीड़ित।
भावार्थ - पाथेय (खाने पीने की सामग्री) साथ में लिए बिना ही जो पुरुष लंबे मार्ग की यात्रा करता है, मार्ग में जाता हुआ वह भूख और प्यास से पीड़ित होकर दुःखी होता है।
एवं धम्म अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं। गच्छंतो सो दुही होइ, वाहि रोगेहिं पीडिओ॥२०॥
कठिम-शब्दार्थ ।- धम्मं - धर्म को, अकाऊणं - किये बिना, परं भवं - परभव में, वाहि - व्याधि, रोगेहिं - रोगों से। • भावार्थ - इसी प्रकार धर्म का आचरण किये बिना जो पुरुष परभव में जाता है तो परभव में जाता हुआ वह व्याधि और रोगों से पीड़ित होकर दुःखी होता है। .....
अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेज्जो पवज्जइ। ... गच्छंतो सो सुही होइ, छुहातण्हा-विवज्जिओ॥२१॥ .. कठिन शब्दार्थ - सपाहेजो - पाथेय सहित, सुही - सुखी, छुहातण्हा - भूख और प्यास, विवजिओ' - रहित।
भावार्थ - पाथेय सहित जो पुरुष लम्बे मार्ग की यात्रा करता है तो मार्ग में जाता हुआ वह पुरुष भूख और प्यास से रहित होकर सुखी होता है।
एवं धम्मं वि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं। गच्छंतो सो सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे॥२२॥ कठिन शब्दार्थ - अप्पकम्मे - अल्प कर्म वाला, अवेयणे - वेदना से रहित।
भावार्थ - इसी प्रकार जो पुरुष धर्म का सेवन करके परभव में जाता है तो जाता हुआ वह अल्पकर्म - अल्प पाप वाला और वेदना से रहित होकर सुखी होता है।
विवेचन - धर्माराधना करने वाला पुरुष इसलोक में भी सुखी होता है और परलोक में भी सुखी होता है क्योंकि धर्माचरण के कारण उसके अशुभ कर्म बहुत ही अल्प होते हैं और ... पाप कर्म अल्प होने से असाता वेदनीय अत्यल्प होने से वह सुखी होता है, इसलिये 'अप्पकम्मे अवेयणे' कहा है।
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