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________________ ३३२ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ ... उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन महाबलः परिकथितः। यदि वाऽन्यः कोऽपि विदितः समयज्ञानां ततः स एवात्र वाच्य इति सप्तदश (३५-५१) सूत्रार्थः॥ ____अर्थ - महाबल संबंधी कथानक भगवती सूत्र में आये हुए महाबल को समझना। अथवा बहुश्रुतों को ज्ञात कोई अन्य महाबल को यहाँ पर समझना चाहिए। भगवती सूत्र में वर्णित महाबल के लिए देवगति में जाना बताया है। किन्तु उत्तराध्ययन की चूर्णि आदि में इस अध्ययन में वर्णित सभी आत्माओं का तद्भवमोक्षगामी होना बताया है। . अतः यहाँ पर भगवती सूत्र से भिन्न अन्य कोई महाबल होने चाहिए। 'महाबल मलया चारित्र' वाले महाबल को यहाँ पर मानने में कोई बाधा नहीं आती है। उपदेश का सार कहं धीरो अहेउहि, उम्मत्तो व्व महिं चरे। एए विसेसमादाय, सूरा दढपरक्कमा॥५२॥ कठिन शब्दार्थ - कहं - कैसे, धीरो - धीर, अहेऊहिं - अहेतु चादों से प्रेरित होकर, उम्मत्तो.- उन्मत्त, महिं - पृथ्वी पर, चरे - विचरण करे, एए - इस प्रकार ये, विसेसमादायविशेषता जान कर, सूरा - शूरवीर, दढपरक्कमा - दृढ पराक्रमी। भावार्थ - क्षत्रिय राजर्षि कहते हैं कि हे मुने! धीर एवं बुद्धिमान् पुरुष, क्रियावादी, अक्रियावादी आदि वादियों के कुतर्कों में फंस कर उन्मत्त पुरुष के समान पृथ्वी पर कैसे विचर सकता है? अर्थात् नहीं विचर सकता। ऐसा विचार कर तथा ज्ञान और क्रिया से युक्त जैन धर्म की विशेषता को जान कर पूर्वोक्त शूरवीर एवं दृढ़ पराक्रम करने वाले प्रबल पुरुषार्थी भरतादि चक्रवर्ती आदि नरेशों ने जैन धर्म एवं संयम स्वीकार कर आत्म-कल्याण किया। हे मुनीश्वर! इसी प्रकार आप भी इस जैन-धर्म में अपने चित्त को दृढ़ करके विचरते हुए अपने अभीष्ट पद को प्राप्त करने का प्रयत्न करो। अच्चंत-णियाणखमा, सच्चा (एसा) मे भासिया वई। . अतरिंस तरंतेगे, तरिस्संति अणागया॥५३॥ कठिन शब्दार्थ - अच्चंत णियाणखमा - अत्यंत निदान क्षम - युक्तिसंगत-कर्ममल को शोधन करने में समर्थ, सच्चा - सत्य, मे - मैंने, भासिया - कही है, वई - वाणी, १ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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