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________________ संयतीय - नमिराजर्षि ३२७ ★★★★dddddddddddddddddddd***★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ समृद्धशाली दशार्ण देश का राज्य, छोड़ कर निकला तथा मुनि होकर तप-संयम का पालन करके मोक्ष प्राप्त किया। विवेचन - दशाणदेश के राजा दशार्णभद्र को ऐमा विचार हुआ कि - मैं भगवान् महावीर स्वामी का परम भक्त हूं अतः ऐसी अद्भूत ऋद्धि एवं वैभव के साथ भगवान के दर्शन करने जाऊँ जैसा आज तक कोई नहीं गया हो। ऐसा सोचकर दशार्णभद्र राजा वस्त्राभूषणों से पूर्णतया अलंकृत होकर सपरिवार चतुरंगिनी सेना एवं नागरिकजनों सहित सुसज्जित हस्ती पर आरूढ़ होकर ठाट बाट के साथ भगवान् की सेवा में जाने के लिए रवाना हुआ। ____दशार्णभद्र राजा की सवारी ज्योंही भगवान् के समवसरण के निकट पहुंच रही थी त्योंही इन्द्र ने अवधिज्ञान से दशार्णभद्र के अहंकार युक्त विचारों को जाना और निर्णय किया कि राजा के वैभवमद को उतारना चाहिए जिससे यह प्रतिबोध पा सके। ऐसा सोच कर इन्द्र अपनी वैक्रिय शक्ति से ऐरावण हाथी पर बैठ कर देव-देवांगनाओं के साथ कई गुना अधिक वैभव समृद्धि के साथ भगवान् के समीप आकर प्रदक्षिणा पूर्वक वंदना करने लगा। इन्द्र का अपार वैभव देखकर दशार्णभद्र का गर्व चूर-चूर हो गया। ___ दशार्णभद्र राजा ने सोचा - "भौतिक वैभव में तो मैं इन्द्र की बराबरी नहीं कर सकता हूं किंतु यदि साधु बन कर उत्कृष्ट धर्माचरण करूं तो आध्यात्मिक वैभव में इन्द्र मेरी बराबरी नहीं कर सकेगा। ऐसा करने पर ही मेरी विजय हो सकेगी।" - इस प्रकार संवेग भावना से प्रतिबुद्ध हो राजा दशार्णभद्र ने भगवान् के चरणों में दीक्षा अंगीकार की। देवराज शक्र ने मुनि दशार्णभद्र को वंदन करते हुए कहा - आप भौतिक समृद्धि का त्याग कर और श्रमणत्व स्वीकार कर विजयी बने हैं। पहले अभिमानग्रस्त होकर आपने भगवान् को द्रव्य वंदन किया है अब प्रव्रज्या ग्रहण करके वास्तव में आपने प्रभु को भाव वंदन किया है। अतः आप महान् हैं। अब मैं आपकी चरण रज की भी तुलना नहीं कर सकता हूं। इस प्रकार दशार्णभद्र मुनि की प्रशंसा करते हुए शक्रेन्द्र स्वस्थान को लौट गया। ___१२. ननिशजवि णमी णमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णे पज्जुवडिओ॥४५॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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