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________________ संयतीय - हरिषेण चक्रवर्ती चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिडिओ। चइत्ता उत्तमे भोए, महापउमे तवं चरे ॥४१॥ कठिन शब्दार्थ ८. महापंम चक्रवर्ती · Jain Education International उत्तमे भोए - उत्तम भोगों को, महापउमे - महापद्म, तवं चरे तपाचरण किया। भावार्थ महा समृद्धिशाली महापद्म नाम के नौवें चक्रवर्ती ने भारत वर्ष के राज्य को छोड़ कर तथा उत्तम काम-भोगों को छोड़ कर तप-संयम अंगीकार कर आत्म-कल्याण किया । विवेचन - हस्तिनापुर के महाप्रतापी राजा पद्मोत्तर के विष्णुकुमार और महापद्म नामक दो पुत्र थे। जब राजा पद्मोत्तर ने संयम अंगीकार कर आत्मकल्याण का निश्चय किया और बड़े पुत्र विष्णुकुमार को युवराज बनाना चाहा तो विष्णुकुमार ने छोटे भाई महापद्म को युवराज बनाने एवं स्वयं दीक्षित होने की भावना प्रकट की । पद्मोत्तर एवं विष्णुकुमार ने प्रव्रज्या ली। महापद्मः राजा बना। संपूर्ण भरत क्षेत्र पर एक छत्र राज्य कर महापद्म ने चक्रवर्तीपन भोगा । न्याय नीति पूर्वक प्रजा का पालन करते हुए श्रमण दीक्षा अंगीकार की और तप संयम की साधना कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। ३२५ *** ९. हरिषेण चक्रवर्ती एगच्छत्तं पसाहित्ता, महिं माण णिसूद (र) णो । हरिसेणो मणुस्सिंदो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४२ ॥ कठिन शब्दार्थ - एगच्छत्तं एक छत्र, पसाहित्ता - शासन करके, महिं पृथ्वी का, माणणिसूद (र) णो - शत्रुओं का मान मर्दन करने वाले, हरिसेणो- हरिषेण, मणुस्सिंदो मनुष्येन्द्र! · - - भावार्थ - मनुष्यों में इन्द्र के समान हरिषेण नाम के दसवें चक्रवर्ती ने शत्रुओं के मान का मर्दन करके पृथ्वी पर एक छत्र राज्य स्थापित किया। इसके बाद राज्य-वैभव का त्याग करके तप-संयम का आराधन करके अनुत्तर- प्रधान गति मोक्ष को प्राप्त किया । For Personal & Private Use Only विवेचन काम्पिल्य नगर में महाहरि राजा की 'मेरा' देवी रानी की कुक्षि से हरिषेण का जन्म हुआ । यौवनवय प्राप्त होने पर पिता ने राज्य सौंपा। छह खण्ड जीत कर चक्रवर्ती www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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