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________________ ३१२ - उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन *********************xxkakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkit संजय राजर्षि की क्षत्रियराजर्षि से भेंट चिच्चा रटुं पव्वइए, खत्तिए परिभासइ। जह ते दीसह रूवं, पसण्णं ते तहा मणो॥२०॥ कठिन शब्दार्थ - चिच्चा - छोड़ कर, रष्टुं - राष्ट्र-राज्य, पव्वइए - दीक्षित हुए, खत्तिए - क्षत्रिय, परिभासइ - कहा, दीसइ - दिखाई देता है, रूवं - रूप, पसण्णं - प्रसन्न, मणो - मन। भावार्थ - पूर्व संस्कारों की प्रबलता एवं किसी निमित्त विशेष से उनको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसके प्रभाव से वे क्षत्रिय नरेश संसार से विरक्त हो गये और राष्ट्र-राज्य छोड़ कर दीक्षा अंगीकार कर ली। ग्रामानुग्राम विचरते हुए उनकी संजयमुनि से भेंट हुई। संजयमुनि को देख कर, वे कहने लगे कि हे मुनीश्वर! जिस प्रकार आपका रूप प्रसन्न (विकार रहित) दिखाई देता है, उसी प्रकार आपका मन भी निर्मल एवं विकार रहित है। विवेचन - गर्दभाली मुनीश्वर के शिष्य संजयमुनि, साधु जीवन में दृढ़ तथा गीतार्थ बन कर गुरु आज्ञा से ग्रामानुग्राम विचरते हुए उनकी क्षत्रिय राजर्षि से भेंट हुई। वे क्षत्रियराजर्षि पूर्व जन्म में वैमानिक जाति के देव थे। वहां से चव कर वे क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुए। पूर्व संस्कारों की प्रबलता एवं किसी निमित्त विशेष से उनको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया इस कारण उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ। वे अपने राज्यादि का परित्याग करके प्रव्रजित हुए। शास्त्रकार ने इनके नाम का निर्देश नहीं किया है। केवल क्षत्रियकुल में जन्म होने के कारण इन्हें 'क्षत्रिय मुनि' कहा गया है। परिचयात्मक प्रश्न किं णामे किं गोत्ते, कस्सट्ठाए व माहणे। कहं पडियरसि बुद्धे, कहं विणीए त्ति वुच्चसि ॥२१॥ कठिन शब्दार्थ - णामे - नाम, किं - क्या, गोत्ते - गोत्र, कस्सहाए - किसलिए, माहणे - माहन, कहं - कैसे, पडियरसि - परिचर्या (सेवा) करते हो, विणीए - विनीत, बुचसि - कहलाते हो। भावार्थ - क्षत्रिय मुनि, संजय मुनि से प्रश्न करते हैं कि मुनीश्वर! आपका नाम क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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