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________________ संजइज्जं णामं अट्ठारहमं अज्झयणं संयतीय नामक अठारहवाँ अध्ययन उत्थानिका - सतरहवें अध्ययन में पापश्रमण का स्वरूप बतलाने के बाद आगमकार इस अठारहवें अध्ययन में सुश्रमण का स्वरूप बतलाते हैं । प्रस्तुत अध्ययन का नाम 'संजइज्जं' अर्थात् संजतीय या संयतीय है। संयति शब्द का सामान्य अर्थ होता है मन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला साधक । यहां यह शब्द दो अर्थ ध्वनित कर रहा है १. संयति या संजति नामक राजा के जीवन का परिवर्तन और २. संयति अर्थात् मुनि के जीवन का प्रभाव। इस अध्ययन में संजय (संयति) राजा के शिकारी जीवन की तथा इसके बाद उसके संयमी जीवन की झांकी प्रस्तुत की गयी है । इस अध्ययन के पूर्वार्ध में गर्दभाली मुनि के परिचय और उनके निमित्त से राजा संयति के हृदय परिवर्तन का वर्णन किया गया है जबकि इसके उत्तरार्द्ध में क्षत्रिय मुनि से संयति मुनि की चर्चा और भगवान् महावीर स्वामी के तत्त्व दर्शन का निरूपण किया गया है। साथ ही संयति मुनि को धर्म में स्थिर करने हेतु क्षत्रिय मुनि, भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, महापद्म, हरिषेण, जय आदि चक्रवर्ती तथा दशार्णभद्र, नमिराज, करकण्डु आदि चार प्रत्येक बुद्ध, उदायन, विजय, काशीराज महाबल आदि बीस महापुरुषों की जीवन झांकी प्रस्तुत की गयी है। इस अध्ययन में वर्णित सभी आत्माएं संयम अंगीकार करके ज्ञानादि की उत्कृष्ट आराधना करके मोक्ष गति को प्राप्त हुई । कोटिकगणीय वाणिज्यकुलीन वज्रशाखीय श्री गोपालगणिमहत्तरशिष्य जिनदासगणिमहत्तर कृत उत्तराध्ययन चूर्णि में भी क्षत्रिय राजर्षि द्वारा कीर्तित सभी मुनियों को मोक्ष जाना बताया है। यथा एतत्पुण्यपदंश्रुत्वा, कृत्वाचये मोक्षं गताः । तानहं कीर्तियिष्यामि स्थिरीकरणार्थं, 'भरहो वि भारहं वासं चिच्चा कामाइ पव्वए' इत्यादि, एवमादाय धीरा धर्मं कृत्वा मोक्षं गता इति । इसकी प्रथम गाथा इस प्रकार है - Jain Education International - - - For Personal & Private Use Only - - - www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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