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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन धम्मे हर बंभे संति - तित्थे, अणाविले अत्त-पसण्णलेसे । जहिंसि हाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥ ४६ ॥ कठिन शब्दार्थ - धम्मे धर्म, बंभे २१६ ब्रह्मचर्य, अणाविले - अनाविल - निर्मलआत्मा प्रसन्न लेश्या है, विमलो - विमल भावमल कलुष भाव से रहित, अत्तपसण से रहित, विसुद्ध - विशुद्ध कर्म कलंक रहित, सुसीइभूओ - सुशीतीभूत- अत्यंत शीतल होकर, पजहामि - दूर करता है, दोसं- दोष को । भावार्थ - मिथ्यात्वादि से जो अकलुषित है तथा जहाँ प्राणियों को प्रसन्न ( शुभ ) लेश्या की प्राप्ति होती है ऐसा धर्म रूप जलाशय है और ब्रह्मचर्य रूप शांति तीर्थ है जहाँ पर स्नान करके विमल ( कर्ममल रहित), विशुद्ध एवं कषायाग्नि के शान्त हो जाने से अत्यन्त शीतल हुआ मैं दोष (पाप) को दूर करता हूँ। विवेचन जाता है। जो प्रश्नोत्तर रूप में इस प्रकार है । - - - प्रश्न स्नान के लिए जलाशय कौनसा है? उत्तर अहिंसा रूप धर्म । प्रश्न उस जलाशय का तीर्थ- सौपान कौन है ? उत्तर - ब्रह्मचर्य और शांति । - - Jain Education International - प्रश्न किसमें स्नान करने से कर्म रज दूर होता है ? उत्तर - ब्रह्मचर्य और शांति तीर्थं में स्नान करने से कर्म रज से रहित हुआ यह आत्मा प्रसन्न लेश्या वाला होता है। प्रश्न उत्तर . प्रस्तुत गाथा में आध्यात्मिक स्नान और उसके साधनों की जानकारी दी गई है **** प्रश्न आप किस जलाशय में स्नान करके परमशांति को प्राप्त होते हुए कर्म मल को छोड़ते हैं? क्या इस जलाशय में स्नान करने से आत्मा निर्मल शुद्ध हो जाता है ? हाँ, इसी जलाशय में स्नान करने से आत्मा कर्ममल से रहित होकर विशुद्ध हो उत्तर - मैं उक्त अहिंसा धर्म रूप जलाशय में स्नान करके अत्यंत शांति को प्राप्त होता हुआ कर्मरज को दूर करता हूँ। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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