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________________ २१४ उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन *aaakakakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk अभिमान न होने से जो. त्यक्त देह कहलाते हैं वे ही पुरुष कर्म रूप वैरियों के विनाश करने वाले परम श्रेष्ठ आध्यात्मिक यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले हैं। यज्ञ के साधन के ते जोई के य ते जोइठाणा, का ते सुया किं च ते कारिसंग? एहा य ते कयरा संति भिक्खू?, कयरेण होमेण हणासि जोइं?॥४३॥ कठिन शब्दार्थ - जोई - ज्योति - अग्नि, जोइठाणा - अग्नि का स्थान (अग्नि कुण्ड), सुया - स्त्रोता (घी आदि डालने की कुड़छी) कारिसंगं - अग्नि प्रदीप्त करने का साधन, एहा - समिधा (ईधन) संति - शांति पाठ, होमेण - होम से, हुणासि - हवन करते हैं। भावार्थ - हे भिक्षु! आपके अग्नि कौनसी है और आपके अग्नि का स्थान कौनसा हैं? आपके कुड़छी कौनसी है और आपके अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए कंडा कौनसा है? आपके लकड़ियाँ और पाप का शमन करने वाला शान्ति-पाठ कौनसा हैं तथा किस होम से - अर्थात् किस वस्तु की आहति देकर आप अग्नि को प्रसन्न करते हो? . . . . तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंग। -- कम्मेहा संजम-जोग-संती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं ॥४४॥ कठिन शब्दार्थ - तवी - तप, जोगा - योग, कम्मेहा - कर्म समिधा है; संजमजोगसंयम की प्रवृत्ति, इसिणं - ऋषियों के लिए, पसत्थं - प्रशस्त। भावार्थ - तप रूप अग्नि है। जीव अग्नि का स्थान है। मन, वचन और काया के शुभ व्यापार कुड़छी रूप है। शरीर तप रूप अग्नि को उद्दीपन करने के लिए कंडा रूप है। अष्ट कर्म लकड़ी रूप है। संयम के व्यापार पाप शमन के लिए शान्ति-पाठ रूप हैं। इस प्रकार में ऋषियों द्वारा, प्रशंसा किया गया सम्यक् चारित्र रूप होम करता हूँ अर्थात् सम्यक् चारित्र रूप हवनवस्तु से तप रूप अग्नि को प्रसन्न करता हूँ। विवेचन - मुनि ने अहिंसामय आध्यात्मिक यज्ञ के विषय में पूछे गये ब्राह्मणों के प्रश्नों के क्रमशः जो उत्तर दिये हैं। वे इस प्रकार हैं - प्रश्न - आपके यज्ञ में अग्नि क्या है? उत्तर - तप रूप अग्नि है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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