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________________ [23] २६२ ܕ?$ ३२१ ३२४ **********************kartattititiktatiriktatitatitiradititik क्रं. विषय पृष्ठ | क्रं. विषय पृष्ठ २७३. दसवीं बाड़ - २६४. पाप और धर्म का फल ३१५ शब्दादि में आसक्ति का निषेध २८६ | २६५. शुद्ध ज्ञान क्रिया में स्थिर रहने का उपदेश ३१७ २७४. ब्रह्मचर्य समाधि भंग के कारण २६० २६६. धर्म में सुदृढ़ करने के लिए महापुरुषों - २७५. शंका स्थानों का त्याग २६१ के उदाहरण ३१६ २७६. ब्रह्मचर्य की समाधि-स्थायिता २६१ १. भरत चक्रवर्ती ३१९ २७७. ब्रह्मचर्य की महिमा २६१ २. सगर चक्रवर्ती ३२० २७८. उपसंहारं ३. मघवा चक्रवर्ती पापश्रमणीय नामक सत्तरहवां ४. सनत्कुमार चक्रवर्ती ५. शांतिनाथ ३२३ अध्ययन २६३-३०२ ६.कुंथुनाथ ३२४ २७६. पापश्रमणता का प्रारम्भ २६३ ७. अरनाथ २८०. पापश्रमण का स्वरूप २६४ ८. महापद्म चक्रवर्ती ३२५ 8. हरिषेण चक्रवर्ती ३०२ २८१. उपसंहार . . ३२५ १०. जय चक्रवर्ती ३२६ संयतीय नामक अठारहवाँ ११. दशार्णभद्र राजा ३२६ . अध्ययन ३०३-३३३ १२. नमिराजर्षि ३२७ २८२. संजय राजा का मृगयार्थ गमन ३०४ १३-१५. करकण्डू आदि प्रत्येक बुद्ध . ३२८ २८३. ध्यानस्थ गर्दभालि अनगार १६. उदायन नृप ३२९ १७. काशीराज नन्दन ३३० २८४. मृग का हनन : १८. विजय राजा ३३० २८५. नृप का पश्चात्ताप १९. महाबल राजर्षि ३३१ २८६. मुनि से क्षमायाचना ३०६ २६७. उपदेश का सार २८७. भयाक्रान्त राजा की अभय प्रार्थना ३०७ २६८. उपसंहार ३३३ २८८. मुनि द्वारा अभयदान और त्याग का उपदेश३०८ _ मृगापुत्रीय नामक उन्नीसवाँ २८६. संजय नृप की विरक्ति और प्रव्रज्या ग्रहण३११ अध्ययन ३३४-३७१ २६०. संजय राजर्षि की क्षत्रियराजर्षि से भेंट ३१२ २६१. परिचयात्मक प्रश्न ३१२ २६६. मुनिदर्शन ३३५ २६२. संजय राजर्षि द्वारा उत्तर ३१३ ३००. मृगापुत्र को जातिस्मरण ज्ञान ३३६ २६३. चार वादों का निरूपण ३१४ | ३०१. विषयभोगों से विरक्ति ३३८ ३०५ ३०५ ३०५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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