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________________ २०६ उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★kakakakakakakakakkartitattttttarakatti वाले, रुहिरं - रुधिर का, वमंते - वमन करने को, पासित्तु - देख कर, भद्दा - भद्रा, इणंइस प्रकार, आहु - कहने लगी। भावार्थ - रौद्र रूप धारण किये हुए असुरभाव वाले वे यक्ष आकाश में रह कर वहां यज्ञशाला में उस कुमार वर्ग को मारने लगे। यक्षों के प्रहारों से भिन्न-देह वाले रुधिर का वमन करते हुए उन कुमारों को देख कर भद्रा ने पुनः यह कहा। मुनि की आशातना का दुष्परिणाम गिरिं णहेहिं खणह, अयं दंतेहिं खायह। जायतेयं पाएहिं हणह, जे भिक्खं अवमण्णह॥२६॥ कठिन शब्दार्थ - गिरि - पर्वत को, णहेहिं - नखों से, खणह - खोदते हो, अयं - लोहे को, दंतेहिं - दांतों से, खायह - चबाते हो, जायतेयं - अग्नि को, पाएहिं - पैरों से, हणह - कुचलते हो, अवमण्णह - अपमान करते हो। , ___भावार्थ - तो तुम लोग भिक्षु का अपमान कर रहे हो मानो पर्वत को नखों से खोद रहे हो लोहे को दांतों से चबा रहे हो और अग्नि को पांवों से कुचल रहे हो। , विवेचन - जैसे नखों से पहाड़ नहीं खोदा जा सकता, किन्तु नख ही टूट जाते हैं। दाँतों से लोह चबाने का प्रयास करने में दांत ही टूट जाते हैं और अग्नि को पाँवों से रौंदने से पाँव जल जाते हैं, इसी प्रकार भिक्षु का अपमान तुम्हीं लोगों के लिये दुःखकारी है। महर्षि का गुणानुवाद आसीविसो उग्गतवो महेसी, घोरव्वओ घोरपरक्कमो य। अगणिं व पक्खंद पयंगसेणा, जे भिक्खुयं भत्तकाले वहेह॥२७।।। कठिन शब्दार्थ - आसीविसो - आशीविष लब्धि वाले, उग्गतवो - उग्र तपस्वी, घोरव्वओ - घोरव्रती, घोरपरक्कमो - घोर पराक्रमी, अगणिं - अग्नि में, पक्खंद - कूदते हैं, पयंगसेणा - पतंग सेना-पतंगो का दल, भत्तकाले - भिक्षा काल में, वहेह - मारते हैं। भावार्थ - ये महर्षि आशीविष लब्धि वाले, कठोर तप करने वाले, दुष्कर व्रत वाले और घोर पराक्रम वाले हैं, जो तुम भिक्षा के समय इस भिक्षुक को मार रहे हो सो मानो अपने ही नाश के लिए पतंगों के झुण्ड के समान अग्नि में गिर रहे हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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