SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ १६८ ********★★★★★ भावार्थ अत्यन्त बीभत्स रूप वाला काले रंग का भयावना चपटी नासिका वाला असार (जीर्ण) वस्त्र वाला, धूल से पिशाच - सा बना हुआ और गले में उकरडी पर डाले वैसा गन्दा वस्त्र पहना हुआ यह कौन आ रहा है? - हरिकेशमुनि से पृच्छा कयरे तुमं इय अदंसणिज्जे, काए व आसा इहमागओ सि । ओमचेलया पंसु - पिसायभूया, गच्छ क्खलाहि ! किमिहं ठिओ सि? ॥ ७ ॥ अदंसणिजे - अदर्शनीय, काए किस, आसा - आया है, ओमचेलया आशा, इहं कठिन शब्दार्थ यहाँ, आगओ सि क्खलाहि - हमारी दृष्टि से परे, ठिओसि - खड़े हो । जीर्ण वस्त्रधारी, गच्छ भावार्थ असार ( जीर्ण-शीर्ण) वस्त्र वाला धूल से पिशाच - सा बना हुआ, इस प्रकार अदर्शनीय तू कौन है तथा किस आशा से यहाँ आया है? चला जा, निकल जा, यहाँ क्यों खड़ा है ? - Jain Education International - - - यक्ष द्वारा शरीर पर प्रभाव' जक्खो तहिं तिंदुगरुक्खवासी, अणुकंपओ तस्स महामुणिस्स ।. पच्छायइत्ता णियगं सरीरं, इमाई वयणाई उदाहरित्था ॥ ८ ॥ - - - कठिन शब्दार्थ - जक्खो यक्ष, तहिं - उस समय, तिंदुयरुक्खवासी - तिन्दुक वृक्ष में रहने वाला, अणुकंपओ अनुकम्पा करने वाला, पच्छायंइत्ता प्रच्छन्न (छिपा ) करके, णियगं - अपने, उदाहरित्था - बोलने लगा । भावार्थ उस समय उस महामुनि पर अनुकम्पा करने वाला (भक्तिभाव वाला) तिंदुक वृक्ष पर रहने वाला यक्ष अपना शरीर छिपा कर अर्थात् मुनि के शरीर में प्रवेश कर के ये आगे कहे जाने वाले वचन कहने लगा। - - चले जाओ, For Personal & Private Use Only विवेचन - उन ब्राह्मणों के तिरस्कार युक्त वचनों को सुनकर वे मुनि तो मौन रहे किन्तु उनकी सेवा में रहने वाले यक्ष ने उन याज्ञिकों से वार्तालाप किया। इससे यह सिद्ध होता है कि धर्मात्मा और गुणीजनों की पूजा मनुष्य तो क्या देवता भी करते हैं। दशवैकालिक सूत्र अ० १ गाथा www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy