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________________ हरिसिज णाम बारहं अज्झयणं हरिकेशीय नामक बारहवां अध्ययन उत्थानिका - ग्यारहवें अध्ययन में बहुश्रुत की पूजा का वर्णन किया गया है। बहुश्रुत को भी तप का अनुष्ठान करना परम आवश्यक है। इसलिए इस प्रस्तुत बारहवें अध्ययन में तप की महिमा बतलाते हुए परम तपस्वी हरिकेश बल का जीवन वृत्तांत दिया गया है। टीकाकार ने हरिकेश बल साधु का पूर्व जीवन वर्णन इस प्रकार किया है - जातिमद के कारण हरिकेश बल का जन्म एक चाण्डाल के घर में हुआ। जाति, रूप संबंधी अहंकार के कारण उसका तन सौभाग्य और रूप रहित था। उसकी प्रकृति भी अत्यंत कठोर थी। अपनी दैहिक कुरूपता एवं क्रोधी झगडालु स्वभाव के कारण वह पास पड़ौसियों का ही नहीं अपितु स्वयं अपने परिवार वालों का भी प्रिय नहीं रहा। उसके साथी बालक उसके शरीर की आकृति देख कर उससे घृणा करते थे। इस प्रकार घर बाहर सभी की उपेक्षा के कारण वह अधिक कठोर बनता चला गया। एक बार नगर के बाहर सभी चांडाल जाति के लोग कोई उत्सव मनाने हेतु एकत्रित हुए। हरिकेश बल भी उस उत्सव में गया किन्तु उसकी आकृति एवं प्रकृति के कारण कोई भी उसके साथ क्रीड़ा करने अथवा बातचीत करने को तैयार नहीं था। वह अकेला एकान्त में बैठा हुआ उत्सव में चल रहे आमोद-प्रमोद को टुकर-टुकर देख रहा था। उसे अपनी इस दयनीय दशा पर अत्यंत दुःख हो रहा था। अचानक वहाँ एक सर्प-सांप आ निकला। उसको अति भयंकर विषधर समझ कर वहाँ पर एकत्रित चाण्डालों ने उसे मार डाला। कुछ समय बाद ही वहाँ पर एक बड़ी लम्बी गोह-अलशिक (दो मुंही) आ निकली। लोगों ने उसे निर्विष समझ कर उसे मारा नहीं किन्तु उसकी पूजा करने लगे। कुछ दूरी पर खड़ा हरिकेश बल भी यह सब दृश्य देख रहा था। एक समान दिखने वाले दोनों प्राणियों के साथ किये गये भिन्न-भिन्न व्यवहार को देख कर वह चिंतन करने लगा कि वास्तव में प्राणी अपने ही दोषों से सर्वत्र तिरस्कार का पात्र बनता है। मैं भी सांप के समान क्रोध रूप विष से भरा हुआ हूँ। इसीलिए ये लोग मेरा तिरस्कार कर रहे हैं और यदि मैं दो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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