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________________ १७० उत्तराध्ययन सूत्र - दसवां अध्ययन ********************************************************* का बल मिला है वे उसे वश में रखने का प्रयत्न करे और जीवन के अमूल्य समय को प्रमाद में न खोकर शास्त्र स्वाध्याय में लगावे। परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पंडुरया हवंति ते। से फास-बले य हायइ, समयं गोयम! मा पमायए॥२५॥ कठिन शब्दार्थ - फासबले - स्पर्श बल। भावार्थ - तुम्हारा शरीर जरा (बुढ़ापा) एवं रोगादि कारणों से जीर्ण हो रहा है। तुम्हारे केश धवल (सफेद) हो रहे हैं और वह शरीर की स्पर्शन शक्ति क्षीण होती.जा रही है। अतएव हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद मत कर। विवेचन - शरीर का बल जैसा युवावस्था में होता है वैसा वृद्धावस्था के आगमन में नहीं रहता तथा रोगादि के होने पर वह भी क्षीण हो जाता है अतः जब तक यह शरीर बलवान् है तब तक धर्माराधन कर लेना चाहिये। सर्व शरीर की निर्बलता परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पंडुरया हवंति ते। , से सव्वबले य हायइ, समयं गोयम! मा पमायए॥२६॥ कठिन शब्दार्थ - सव्वबले - सर्वबल। भावार्थ - जरा (बुढापा) अथवा रोगादि कारणों से तुम्हारा शरीर जीर्ण होता जा रहा है तुम्हारे केश श्वेत, होते जा रहे हैं और वह हाथ-पांव आदि वयवों की अथवा मन-वचन-काया की सभी शक्ति घटती जा रही है। अतएव हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद मत कर। विवेचन - वृद्धावस्था में शरीर के सारे अवयव निर्बल हो जाते हैं अतः जब तक जरा अवस्था का आगमन नहीं होता तब तक अप्रमत्त भाव से धर्मआराधन करना चाहिये ताकि पुण्ययोग से प्राप्त मानव भव को सार्थक किया जा सके। रोगों के द्वारा निर्बलता अरई गंडं विसूइया, आयंका विविहा फुसंति ते। विहडइ विद्धंसह ते सरीरयं, समयं गोयम! मा पमायए॥२७॥ कठिन शब्दार्थ - अरई - अरति-चित्त का उद्वेग, गंडं - स्फोटक, विसूइया - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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