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________________ १२० [18] ************************************************************ क्रं. विषय - पृष्ठ | क्रं. विषय क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय नामक छठा ६३. अज्ञानी जीव की गति . ११५ अध्ययन ६२-१०१ ६४. धीर जीव की गति ११६ ७५. अज्ञान, दुःख का कारण ६५. उपसंहार ११६ ७६. सम्यग्दृष्टि का कर्तव्य कापिलीय नामक आठवां ७७. परिग्रह त्याग का फल अध्ययन ११७-१३० ७८. भ्रान्त मान्यताएं ६६. दुर्गति निवारण का उपाय .. ११६ ७६. शरीरासक्ति, दुःख का कारण ६७. भोगासक्त जीव की दशा ८०. अप्रमत्तता का उपदेश ६८. कामभोगों के त्याग की दुष्करता .. १२१ ८१. संग्रहवृत्ति का त्याग ६६. पाप श्रमणों की दुर्गति... १२१ ८२. एषणा समिति का पालन १००. साधुजनोचित कर्तव्य १२२ ८३. उपसंहार १०१. एषणा समिति १२३ .. औरभ्रीय नामक सातवां १०२. संयमशील साधु का आहार अध्ययन १०२-११६ १०३. साधुचर्या के विरुद्ध आचरण, . १२५ ८४. १. एलक दृष्टान्त . १०२| | १०४. भ्रष्ट साधकों की गति-मति १२६ वाष्टान्तिक (उपनय) . १०३ | १०५. तृष्णा का दुष्पूरता १२७ 'नरकायु के अनुकूल पापकर्म १०४ | १०६. तृष्णा क्यों शांत नहीं होती? १२८ पदार्थों के संग्रह एवं त्याग का फल १०६ १०७. स्त्री संसर्ग त्याग १२८ जीव की भावी गति . १०६ | १०८. उपसंहार । १३० ८५. २-३. काकिणी और आम्रफल नमि प्रव्रज्या नामक नौवाँ का उदाहरण १०७ देव-मनुष्यायु अध्ययन १३१-१५५ ८६. ४. तीन वणिकों का दृष्टान्त १०६ | १०६. नमिराज का अभिनिष्क्रमण ८७. दुर्गति में जाने वाले जीव १११ / ११०. अभिनिष्क्रमण कैसे हुआ? १३४ ८८. मनुष्यत्व प्राप्त जीव १११ | १११. देवेन्द्र ब्राह्मण के रूप में १३५ ८९. मनुष्यत्व प्राप्त व्यक्ति की योग्यता ११२ | ११२. प्रथम प्रश्न - ६०. देवत्व प्राप्त व्यक्ति की योग्यता ११३ मिथिला को कोलाहल क्यों? . १३५ ६१. कामभोगों की तुलना ११४ | ११३. नमिराजर्षि का उत्तर १३५ . ६२. कामभोगों से अनिवृत्ति-निवृत्ति का फल ११५ / ११४. देवेन्द्र द्वारा प्रस्तुति १३७ १२४ . १०० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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